काम के दम पर नहीं, इन कारनामों के कारण बीजेपी ने निकाय चुनाव में लहराया परचम! जरूर पढ़ें

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बीजेपी ने करीब 25 साल बाद महाराष्ट्र नगर निकाय चुनाव शिव सेना से अलग होकर लड़ा। पार्टी को इसका फायदा भी मिला। देश के सबसे अमीर महानगर पालिका बीएमसी में बीजेपी की सीटों में करीब 300 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।

जिन आठ महानगरपालिकाओं में बीजेपी ने जीत हासिल की है उनमें से केवल नागपुर और अकोला में ही उसकी दावेदारी पहले से मजबूत थी। नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुख्यालय होने के साथ ही, महाराष्ट्र के मौजूदा मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का गृह जिला है। वहीं विदर्भ के अकोला में भाजपा का पहले से ही मजबूत दखल रहा है।

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महाराष्ट्र की 10 महानगरपालिकाओं के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की धमाकेदार जीत को राज्य और केंद्र पार्टी नेता अपने कामकाज की इस जीत की बड़ी वजह बता रहे हैं लेकिन जमीनी सच्चाई थोड़ी अलग है। 10 में से आठ महानगरपालिकाओं में जीत हासिल हासिल करने वाली भाजपा ने जीत का सबसे बड़ा कारण “आयातित” उम्मीदवार बने हैं। ऐसा लगता है कि पार्टी ने इन चुनावों के लिए दो स्तरीय रणनीति बना रखी थी, एक “चुनाव जिताऊ” उम्मीदवार चुनो और दूसरा, “जहां पार्टी में ऐसा उम्मीदवार न हो वहां दूसरे के जिताऊ उम्मीदवार को अपने में मिला लो।” लगता है कि बीजेपी ने “चुनाव जिताऊ” उम्मीदवार को पहले से भांप लेने की “कला” सीख ली है जो एक जमाने में कांग्रेस की ताकत मानी जाती थी।

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