उत्तराखंड की बीजेपी सरकार कैसे ला पाएगी अच्छे दिन, जब अधिकांश मंत्री हैं पुराने कांग्रेसी

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उत्तराखंड
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देहरादून : परेड ग्राउंड में शपथ लेने के बाद उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और कई विधायक वीजापुर गेस्ट हाउस चले गए, मुख्यमंत्री का आवास कहा जाता है। बीजापुर गेस्ट हाउस में हमारी मुलाकात बड़ी संख्या में आये युवाओं से हुई जो उत्तराखंड के अलग अलग हिस्सों से आये थे। ये लोग पिछले कुछ सालों में बीजेपी से जुड़े और अब दिन रात अपने नेता के साथ मौजूद रहते हैं। रात के 12 बजे तक इन नए विधायकों और मंत्रियों के कमरों के बाहर लंबी कतारें मौजूद थी। इनमे कुछ पत्रकार भी मौजूद थे जो नए सत्ताधारियों से परिचय करने के लिए लाइन में थे।

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यहाँ मौजूद युवाओं का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह एक साधारण परिवार से निकले, संगठन में सपर्पित कार्यकर्ता बनकर काम किया और आज प्रधानमंत्री के ओहदे तक पहुंचे। इसी तरह त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी संघ में लिए पिछले कई सालों से सपर्पित होकर काम किया और उन्हें ये इनाम सीएम के रूप में मिला। ऐसे तमाम उदाहरण इन युवाओं को राजनीति की ओर आकर्षित करते हैं।

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इन्ही बातों ने इन युवाओं में इसी उम्मीद को जन्म दिया है कि रोजगार का कोई रास्ता है नही तो राजनीति सबसे अच्छा विकल्प है और इसे चुन लिया जाये। चुनावों के दौरान ही राजनीतिक पार्टियों का बजट देखें तो यह रोजगार की तलाश में घूम रहे इन युवाओं के लिए रोजगार का जरिया बनता है।यूपी की ही बात करें तो एक रिपोर्ट के अनुसार इस विधानसभा चुनाव में ही राजनीतिक पार्टियों ने 5500 करोड़ रूपये फूंक डाले। इनमे से 10000 करोड़ तो बाँटने और शराब में ही चले गए। इसी तरह टीवी और अख़बारों के लिए 200 करोड़ से ज्यादा के विज्ञापन दिए गए। तो अब सवाल यह है कि क्या युवाओं के अपने नेताओं की चमचागिरी करने के अतिरिक्त कोई रोजगार का रास्ता नही। मीडिया में काम कर रहे पत्रकार भी राजनीतिक पार्टियों के इस बजट पर नजर गढ़ाए बैठे हैं और अब यही इस दौर की पत्रकारिता हो चुकी है।

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