उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गंगोत्री और यमुनोत्री ग्लेशियर के संबंध में एक अहम फैसला सुनाते हुए उन्हें ‘जीवित मनुष्य’ का दर्जा दिया है। हाईकोर्ट ने ग्लेशियर्स का पूरा ख्याल रखने का आदेश दिया है। इसके पहले नैनीताल हाईकोर्ट ने गंगा और यमुना नदी को भी जीवित मनुष्यों के समान दर्जा दिया था। इसके अलावा इस क्षेत्र की नदियों, झील-झरने और घास के मैदान भी इस श्रेणी में रखे गए हैं।
कोर्ट ने गंगा के लिए इंटर स्टेट काउंसिल के गठन के लिए 6 माह का समय दिया है। इसके साथ ही गंगा किनारे प्रदूषण रहित श्मशान घाट तीन माह के भीतर बनाने के निर्देश दिए। इसके अलावा हरिद्वार में गंगा के घाट में भिखारियों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के डीएम हरिद्वार के निर्देश दिए हैं।
पीठ ने गंगा के लिए केंद्र सरकार की पहल की भी सराहना की। कोर्ट ने कहा है कि गंगा के लिए केंद्र ने 862 करोड़ रुपये जारी किए हैं। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती की संवेदनशीलता का भी कोर्ट ने उल्लेख किया।
अदालत ने कहा, ‘गंगोत्री ग्लेशियर हिमालय में सबसे बड़ा ग्लेशियर है जो कि तेजी से कम हो रहे हैं। पिछले 25 वर्षों में ये 850 मीटर से ज्यादा कम हो चुके हैं। इसी तरह यमुनोत्री ग्लेशियर भी चिंताजनक दर से घट रहा है। ग्लेशियरों पर जमी बर्फ पृथ्वी पर ताजा पानी का सबसे बड़ा भंडार होती है’।
शुक्रवार वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ ने गंगा संरक्षण के लिए 66 पेज का फैसला जारी किया। अदालत ने अपने आदेश में मुख्य सचिव को शहर, कस्बों व गांवों नदी और तालाब किनारे रह रहे लोगों को इस आदेश के बारे में प्रतिनिधित्व देकर जागरूक करने के लिए भी अधिकृत किया है। साथ ही केंद्र सरकार की गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए मंजूर किए गए 862 करोड़ जारी करने के लिए सराहना की है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह सुनिश्चित करने को कहा है कि गंगा नदी में किसी भी दशा में सीवरेज न जाए। जो सीवर व अन्य गंदगी बहा रहे हैं, उन्हें सील कर दिया जाए।