देश की संसद में कई मौतों का कारण बनने वाले खतरनाक गेम ‘ब्लू वेल चैलेंज गेम’ को बैन करने की मांग उठ रही है। इस गेम एतिहासिक पृष्ठभूमि पर नजर डाले तो यह गेम 2013 में सबसे पहले रूस में सामने आया। करीब 4 साल में इसने दुनिया भर में 250 से ज्यादा लोगों की जान ले ली। अकेले रूस में 130 से ज्यादा मौतें हुईं। इसके अलावा, अमेरिका से लेकर पाकिस्तान तक, कुल 19 देशों में इस गेम की वजह से खुदकुशी के कई मामले सामने आए हैं। सवाल है कि आखिर ऐसी जीत किस काम की, जब जीतनेवाले की जिंदगी ही न रहे? बेशक किसी भी जीत के मायने तभी हैं, जब उसे एंजॉय करने के लिए सामने वाला जिंदा हो। तो आखिर ऐसे गेम्स खेलने वालों की मानसिकता क्या होती है?
सायकॉलजिस्ट अरुणा ब्रूटा का मानना हैं, ‘इस तरह के गेम में फंसनेवाले बच्चों की पर्सनैलिटी कहीं-न-कहीं कमजोर होती है। वे दूसरों से ना नहीं कह पाते और परिवार से भी खुलकर अपनी बातें शेयर नहीं करते। इससे जब सामने से कोई उसे डराता है या उसे अपनी बातों से प्रभावित करने की कोशिश करता है तो वे जल्दी उसके जाल में फंस जाते हैं।सायकॉलजिस्ट अरुणा ब्रूटा का मानना हैं, ‘इस तरह के गेम में फंसनेवाले बच्चों की पर्सनैलिटी कहीं-न-कहीं कमजोर होती है। वे दूसरों से ना नहीं कह पाते और परिवार से भी खुलकर अपनी बातें शेयर नहीं करते। इससे जब सामने से कोई उसे डराता है या उसे अपनी बातों से प्रभावित करने की कोशिश करता है तो वे जल्दी उसके जाल में फंस जाते हैं।’
ब्लू वेल चैलेंज गेम 50 दिन में पूरा होता है। इस दौरान बच्चे गेम में दिखाए गए झूठ को सच समझने लगते हैं। वे भूल जाते हैं कि कोई भी गेम मनोरंजन और कुछ सीखने के लिए होना चाहिए न कि जान गंवाने के लिए। वे यह नहीं समझ पाते कि किसी भी जीत या रोमांच का मजा तभी है, जब जिंदगी हो। इसके अलावा किशोर अक्सर साथियों के प्रेशर में भी रहते हैं और आसानी से ना नहीं कर पाते। दूसरों से अलग दिखने और करने की चाह में भी वे इस अंधेरे में घिरते जाते हैं। कोई भी गेम, ऐसे केमिकल रिलीज़ करता है, जो खुशी और उड़ान का अहसास कराते हैं। फर्क सिर्फ यह है कि फिजिकल खेल लंबे समय तक इस भाव को बरकरार रखते हैं, जबकि इस तरह के ऑनलाइन गेम तेजी से यह पैदा करते हैं और फिर तेजी से खत्म भी कर देते हैं। ये खेल किशोरों को एक नकली दुनिया में ले जाते हैं। बकौल ब्रूटा, ‘मेरे पास एक लड़का आया। उसने मुझसे कहा कि मैं इंटरनैशनल प्लेयर हूं। मैंने पूछा कि किस खेल का वह प्लेयर है तो उसने कहा कि मैं कंप्यूटर पर स्नूकर खेलता हूं। मेरे साथ अमेरिका, स्पेन और फ्रांस जैसे देशों के खिलाड़ी खेलते हैं। आप सोचिए कि किस कदर वह लड़का सच्चाई से दूर खुद की बनाई दुनिया को ही सच मान रहा था!’
‘ इंटरनेट’ पर लगाम लगाने वाला कोई नहीं है। मसलन, इंस्टाग्राम पर जब आप ब्लू वेल चैलेंज नाम डालकर सर्च करेंगे तो मेसेज आएगा कि इस शब्द से जुड़ी जानकारी जानलेवा हो सकती है, लेकिन इस मेसेज के ठीक नीचे लिखा होता है: आप चाहें तो आगे बढ़ सकते हैं। जाहिर है, साइबर स्पेस में जिम्मेदारी समझने वालों का घोर अभाव है। ऐसे में उन लोगों को चिंता करने की जरूरत है, जिनके बच्चे इन खतरनाक खेलों के संभावित शिकार हो सकते हैं।