नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज(20 अगस्त) कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव कोई बड़े आर्थिक उदारवादी नहीं थे और उन्होंने नेहरूवादी अर्थव्यवस्था की विफलता के चलते मजबूरी में सुधारों की शुरूआत की थी। उनके मुताबिक नेहरूवादी अर्थव्यवस्था से भारत पीछे रह गया था, जबकि उसके दक्षिण पूर्व एशियाई सहयोगी आगे निकल गए थे।
जेटली ने कहा कि सरकार द्वारा लिए गए कर्ज का भुगतान नहीं कर पाने की स्थिति से बचने के लिए राव नेहरूवादी सोच से बाहर निकलने के लिए बाध्य थे, जिनके शासनकाल में 1991 में आर्थिक सुधारों की शुरूआत हुई। जेटली ने कहा कि नरसिंह राव कोई बड़े आर्थिक सुधारक या बड़े आर्थिक उदारवादी नहीं थे।
वित्त मंत्री ने कहा कि जब राव आंध्र प्रदेश के कानून मंत्री थे तो उनका पहला फैसला था कि सभी निजी कॉलेजों को बंद कर देना चाहिए और केवल सरकार को कॉलेज चलाने चाहिए। उन्होंने कहा कि लेकिन जब वह प्रधानमंत्री बन गए तो उन्हें पता चला कि उनके खजाने में कोई विदेशी भंडार नहीं बचा है और देश दिवालियापन की ओर बढ़ रहा है। इसलिए उस मजबूरी के चलते, उस व्यवस्था की विफलता के चलते सुधार लाए गए।
उदारीकरण की व्यवस्था लाने के पीछे राव की अहम भूमिका होने के दावे को चुनौती देते हुए जेटली ने कहा कि ऐसा नहीं है कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव कोई बड़े आर्थिक उदारवादी थे। उन्होंने कहा कि 1950 और 60 के दशक में हमारे पास जहां सीमित संसाधन थे, वहीं 70 और 80 के दशक बर्बादी वाले थे, जिनमें हमारी विकास दर 1-2 प्रतिशत प्रतिवर्ष पर सीमित रही।