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बैंकों के फैसले का बचाव करने वाले कुछ टिप्पणीकारों का कहना है कि बैंकों के इस कदम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नकद-मुक्त अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। लोग बैंक ब्रांच में लेन-देन करने के बजाय डिजिटल और मोबाइल बैंकिग की तरफ बढ़ेंगे। लेकिन सवाल ये है कि क्या डिजिटल और मोबाइल बैंकिंग को बढ़ावा देने के लिए ग्राहकों की जेब काटी जाएगी? बैंकों का सारा मुनाफा ग्राहकों द्वारा जमा पैसे के इस्तेमाल से ही आता है। ऐसे में पहले से ही बड़े मुनाफे में चल रहे ये बैंक ग्राहकों द्वारा अपना ही पैसा जमा करने या निकालने पर पैसा कैसे वसूल सकता है? ऐसे में क्या ये कहना गलत है कि ये प्राइवेट बैंक नरेंद्र मोदी के कैंपेन की आड़ में जनता को चूना लगा रहे हैं?
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