दाल पर छाई महंगाई से निजात पाने के लिए केन्द्र सरकार ने पिछले साल देश के किसानों को दाल की बुआई के लिए प्रेरित किया। किसानों का ध्यान दाल की बुआई की तरफ केन्द्रित करते हुए सरकार ने उन्हें हर संभव मदद का भी भरोसा दिया। यही नहीं दाल उगाने वाले किसानों को उनकी फसल के अच्छे दाम दिलाने के भी वादे किए गए थे। लेकिन इसे क्या कहें कि सरकार के कहने पर किसानों ने दाल का उत्पादन शुरू किया। और जब देश में दाल का उत्पादन बढ़ रहा है तो फिर क्यों सरकार ने बाहर से 61 लाख टन का आयात किया। सवाल सबसे बड़ा ये है कि इन हालातों में भला कैसे किसानों को मिल पाएंगे उनकी फसलों के बेहतर दाम?
इस साल दालों का रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद इंपोर्ट भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है। पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में अब तक करीब 15 फीसदी अधिक दलहन इंपोर्ट हो चुका है। अब तक लगभग 61 लाख टन इंपोर्ट हो चुका है। इंडस्ट्री सोर्सेज की माने तो तुअर पर लगाया गया आयात शुल्क भी इसमें ज्यादा कारगर साबित नहीं। जानकारों के मुताबिक अगर दलहन इंपोर्ट इसी तरह से जारी रहा तो आने वाले खरीफ सीजन की दलहन फसल का किसानों को उचित मूल्य मिलने में परेशानी खड़ी हो सकती है।
पिछले साल देश में कुल 167 लाख टन दलहन उत्पादन हुआ था। जबकि, देश में दलहन खपत करीब 230 लाख टन के आसपास रहती है। इसी अंतर को पाटने के लिए बड़ी मात्रा में दलहन आयात करना पड़ा था। पिछले साल 2 दशक का सबसे अधिक इंपोर्ट करीब 58 लाख टन हुआ था। लेकिन, सरकार के आंकलन के मुताबिक इस बार देश में ही करीब 230 लाख टन दलहन उत्पादन होने की उम्मीद है। जबकि, खपत 240 के आसपास आंकी जा रही है। बावजूद इसके अब तक देश में 15 मार्च तक 61 लाख टन दलहन आयात हो चुका है। इंडियन पल्सेस एंड ग्रेन एसोसिएशन इपगा के अध्यक्ष प्रवीण ढोंगरे ने बताया कि 31 मार्च तक कुल दलहन आयात 64 से 65 लाख टन हो सकता है।
जानकारों की माने तो अगर आयात इसी तरह होता रहा तो किसानों पर अपनी दालों के उचित दाम को लेकर बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है।