नोएडा एक्सप्रेस-वे पर बने सुपरटेक एमेराल्ड कोर्ट प्रॉजेक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त रुख अपनाया है। खरीदारों का पैसा लौटाने को लेकर कोर्ट ने कंपनी के सभी तर्कों को दरकिनार करते हुए तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि कंपनी डूब जाए या मर जाए हमें इससे कोई मतलब नहीं। उसे खरीदारों को पैसा वापस देना होगा। कोर्ट ने सुपरटेक से 17 खरीदारों का पैसा जनवरी 2015 से आज तक मूलधन का 10 फीसदी सालाना दर के हिसाब से चार हफ्ते में लौटाने को कहा।
इसके अलावा कोर्ट ने पैसा देने के बाद कोर्ट में इसका चार्ट जमा करने को भी कहा है। उधर सुपरटेक का कहना है कि कंपनी सभी खरीदारों को उनका पैसा लौटाने का प्रयास कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 25 अक्टूबर को होगी।
क्या है मामला
नोएडा अथॉरिटी ने 2006 में सुपरटेक को 17.29 एकड़ (लगभग 70 हजार वर्ग मीटर) जमीन सेक्टर-93ए में आवंटित की थी। इस सेक्टर में एमेराल्ड कोर्ट ग्रुप हाउसिंग प्रॉजेक्ट के तहत 15 टावरों का निर्माण किया गया था। इन टावरों में प्रत्येक में सिर्फ 11 मंजिल ही बनी थीं। 2009 में नोएडा अथॉरिटी के पास सुपरटेक बिल्डर ने रिवाइज्ड प्लान जमा कराया। इस प्लान में एपेक्स और सियान नाम से दो टावरों के लिए एफएआर खरीदा। बिल्डर ने इन दोनों टावरों के लिए 24 फ्लोर का प्लान मंजूर करा लिया। इस पर बिल्डर ने 40 फ्लोर के हिसाब से 857 फ्लैट बनाने शुरू कर दिए। इनमें 600 फ्लैट की बुकिंग हो गई। ज्यादातर ने फ्लैट की रकम भी जमा करानी शुरू कर दी।
सेक्टर-93 ए के परिसर में 11 मंजिल वाले 15 टावरों के बीच जब दो ऊंचे टावर बनने शुरू हुए तो इस पर वहां के आरडब्ल्यूए ने आपत्ति दर्ज कराई। इन लोगों ने इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में रिट दायर की। हाईकोर्ट ने अप्रैल 2014 में इन दोनों टावरों को गिराने का आदेश दे दिया। आदेश तक एपेक्स टावर में 21 फ्लोर और सियान टावर में 17 फ्लोर बन चुके थे। हाई कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि इन टावरों में फ्लैट खरीदने वालों के लिए दो विकल्प दिए जाएं। इनमें बिल्डर रिफंड मांगने वालों को 14 फीसदी ब्याज के साथ रकम वापस करेगा। यदि खरीदार पैसा वापस नहीं लेना चाहते हैं तो उन्हें दूसरे प्रोजेक्ट में शिफ्टिंग का विकल्प भी दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के टावरों को गिराने के आदेश पर स्टे दे दिया। यह स्टे बिल्डर की अर्जी पर दिया गया था। बिल्डर का तर्क था कि पूरे टावर को गिराने का आदेश अव्यवहारिक है। इसमें जितने तक की अप्रूव बिल्डिंग थी, उसे कैसे गिराया जा सकता है। इसके साथ-साथ जिन खरीदारों ने फ्लैट बुक कराए थे उनके हितों का भी ध्यान रखा जाना था।