बॉलीवुड के सबसे बड़े शोमैन राजकपूर की फिल्मों में जिन्दगी का सच पिरोया होता था। सिनेमा ही राजकपूर की जिन्दगी थी और उनकी हर फिल्म जिन्दगी की एक जागती तस्वीर। सर्कस के जोकर का वो फ़लसफ़ा, इस दुनिया की एक रहस्यमई हकीकत की परछाई थी। ऐसी हकीकत जिसे हर आम दर्शक अपने अंदर समेटे जीता है।छटपटाता है, दिमाग में अंगुलिया घुसेड़ता है, लेकिन उस रहस्य को समझ नहीं पाता। राजकपूर ने अपनी हर फ़िल्म में ऐसी ही फ़लसफ़ों को अपनी फ़िल्मों का थीम बनाया।
हिन्दी सिनेमा के सबसे बड़े शो मैन राजकपूर की फ़िल्में यानि जिंदगी का फ़लसफ़ा यानि आधी हकीकत आधा फ़साना। सिनेमा राज कपूर का पेशा नहीं बल्कि उनका पैशन था। अपने डायलॉग ‘दी शो मस्ट गो ऑन’ को उन्होने हमेशा याद रखा और असलताओं के बाद भी सफ़लता की आस नहीं छोड़ी। उनके फ़िल्मों का हर इक फ़्रेम राज कपूर के लिए उनके दिल की हर-एक धड़कन थी । उनकी हर फ़िल्म उनकी जिंदगी की । उनकी हर फ़िल्म जिंदगी की एक जीती जागती तस्वीर। एक ऐसी तस्वीर जिसमें सच के रंग को अफ़साने की कूंची से बड़ी खूबसूरती के साथ उकेरा गया। कह सकते हैं कि जिंदगी के असली रंगों से बनी थी राजकपूर फ़िल्मों, जो कि उनके मुहब्बत की जीती जागती दास्ताने भी थी।
एक बेहद दिलचस्प सफ़रनामा है राजकपूर की जिंदगी। जिसकी किताब के हर पन्ने पर चस्पा है कई दिलचस्प दास्ताने। हिंदी फ़िल्मों के इस पहले शो मैन का जन्म 14 दिसंबर 1924 को पृथ्वी राज कपूर के घर हुआ था। आपको ये जान कर शायद आश्चर्य होगा कि कुछ पंडितों ने पृथ्वी राज कपूर को ये सलाह दी वो अपने बेटे का नाम सॄष्टी नाथ रखे। लेकिन कलाकार पिता को ये नाम अहंकार भरा और ईश्वर को चुनौती देता हुआ महसूस हुआ। इसलिये उन्होने अपने बेटे का नाम राजकपूर रखा। उस समय खुद पृथ्वी राज कपूर को भी कहां पता था कि उन्होने बेटे के नाम से सृष्टी शब्द तो हटा दिया, लेकिन उनका यहीं बेटा आगे चलकर एक नई सृष्टी की रचना करेगा, लेकिन ईश्वर की तरह बल्कि कलाकार की तरह।
सिनेमा की इस प्रेमी कलाकार ने अपनी पहली ही फ़िल्म से ये तय कर लिया था कि उसकी सिनेमाई दुनिया का फ़लक कही भी ईश्वर की रची दुनिया से कमतर नहीं होगा। शो मैन की कई फ़िल्मों में उनकी जाति जिंदगी इस तरह से घुली हुई थी कि ये कह पाना मुश्किल है कि हकीकत कहां खत्म हुई और कहानी कहां शुरू हुई। उन्होने जो जिंदगी जी, जिन घटनाओं ने उनके दिल को झंकझोरा, जिन लोगों ने उनके दिमाग को छुआ राजकपूर ने उन सबको पर्दे पर हुबहू उतार दिया, और अपने इस मकसद में उन्होने कभी भी नफ़ा-नुकसान, सफ़लता-असफ़लता या फ़िर नतीजे की परवाह नहीं की।
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