आयकर अधिकारियों द्वारा की जा रही एविएशन कंसल्टेंट दीपक तलवार की जांच में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। तलवार का नाम रंजीत सिन्हा डायरी मामले और राडिया टेप में सामने आया था। अधिकारियों ने 22 जून को तलवार के घर पर छापा मारकर जो दस्तावेज और डाटा बरामद किए थे उनके अनुसार तलवार के एनजीओ ‘एडवांटेज इंडिया’ को सीएसआर (कार्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के तहत तीन साल में करीब 143 करोड़ रुपये मिले हैं। उनके एनजीओ को पैसा देने वालों में रक्षा और विमानन क्षेत्र की दो कंपनियां शामिल हैं। आयकर विभाग जून 2012 से अप्रैल 2015 के बीच मिसाइल बनाने वाली यूरोप की अग्रणी कंपनी एमबीडीए और विमानन कंपनी ईएडीएस (अब एयरबस) से एडवांटेज इंडिया को मिले धन की जांच कर रहा है। 2014 में ईएडीएस का एयरबस ग्रुप में पुनर्गठन किया गया था। दोनों कंपनियों ने इंडियन एक्सप्रेस से इस एडवांटेज इंडिया को सीएसआर फंड से चंदा देने की बात स्वीकार करते हुए कहा कि उन्होंने इस राशि की खर्च की निगरानी के लिए भारत में एक “निगरानी कमेटी” बना रखी है।
सीबीआई के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा के निवास के एंट्री रजिस्टर में तलवार का नाम 54 बार आया था। पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल ने सिन्हा को कोल ब्लॉक घोटाले की जांच को प्रभावित करने का आरोप में पद से हटाने का आदेश दिया था। तलवार का नाम नीरा राडिया टेप मामले की सीबीआई द्वारा की जा रही प्रारंभिक जांच में भी सामने आया था कि लेकिन उन पर कोई आधिकारिक मामला नहीं दर्ज किया गया था। आयकर विभाग के अधिकारियों के अनुसार जांच में एडवांटेज इंडिया द्वारा “जाली” खर्च दिखाने का संदेह है। अधिकारियों के अनुसार एडवांटेज इंडिया ने 32 करोड़ रुपये की दवा की खरीद, 25 करोड़ रुपये का मोबाइल मेडिकल यूनिट्स (एमएमयू) के अलावा स्टेशनरी पर बड़ी रकम खर्च दिखाई है। विभाग के एक उच्च अधिकारी ने बताया, ” खर्च के ब्योरे की प्रमाणिकता और आयकर से जुड़े मामलों के अलावा एनजीओ के खर्च पर कई सवाल खड़े होते हैं, दीपक तलवार से एमबीडीए और ईएडीएस से मिले चंदे के इस्तेमाल के बारे में पूछताछ की जाएगी।”
आयकर विभाग के अधिकारी एडवांटेज इंडिया द्वारा गृह मंत्रालय में विदेशी चंदे से जुड़ी दी गई जानकारी की भी जांच कर रहे हैं। विदेशी चंदा लेने वाले सभी एनजीओ को एफसीआरए कानून के तहत मंत्रालय को इसकी जानकारी देनी होती है। मंत्रालय को दी गई जानकारी के अनुसार एडवांटेज इंडिया को 2014-15 में 39.16 करोड़ रुपये विदेशी चंदे के रूप में मिले थे। एनजीओ को 2006-07 से लेकर 2011-12 तक कोई विदेशी चंदा नहीं मिला था। कंपनी द्वारा आयकर विभाग को दिए गए ब्योरे के अनुसार उसने वित्त वर्ष 2014-15 में कुल खर्च 32.34 करोड़ रुपये बताया था. कंपनी ने कहा था कि विदेशी चंदे से मिला 6.81 करोड़ रुपये का इस्तेमाल नहीं हो सका था।
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को एनजीओ के कम्प्लॉयंस मैनेजर संजय मित्तल ने बताया कि एमबीडीए और ईएडीएस ने एडवांटेज इंडिया के साथ एक कंसॉर्शियम बनाकर साल 2012 से 2015 के बीच 85 करोड़ रुपये चंदा दिया। मित्तल ने कहा, “एक समय एडवांटेज इंडिया 8 एमएमयू संचालित करता था जिनसे 4.5 लाख से अधिक लोगं को मुफ्त चिकित्सा सुविदा प्राप्त हुई। इसके अलावा एटवांटेज इंडिया बच्चों को मुफ्त प्राथमिक शिक्षा दिलाने के साथ ही रोजगार केंद्र भी चलाता है।” दीपक तलवार ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्होंने 17 साल पहले एनजीओ की स्थापना की थी लेकिन वो उसके रोजमर्रा के संचान से नहीं जुड़े हैं। तलवार ने कहा, “विदेशी कंपनियों से मिला सारा चंदा कानून है और अगर पैसे का सही इस्तेमाल हुआ है तो क्या इससे कोई फर्क पड़ता है कि वो कहां से आया है? यहां कोई गड़बड़ी नहीं है।”
एमबीडीए ने इंडियन एक्सप्रेस को भेजे जवाब में कहा है, “भारत के साथ अपनी लंबी साझीदारी को देखते हुए एमबीडीए ने कुछ साल पहले सीएसआर कार्यक्रम के तहत भारत में निवेश करना का फैसला किया था। जहां तक एडवांटेज इंडिया से जुड़े सीएसआर कार्यक्रम की बात है, ये वंचित तबके के शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से जुड़ा है।” एमबीडीए ये भी दावा किया कि अपने “डोनोर्स” ओवरसाइट कमेटी के माध्यम से वो सीएसआर के तहत दिए जाने वाले चंदे के इस्तेमाल से जुड़ी योजनाओं पर निगरानी रखती है। वहीं एयरबस से जुड़े सूत्रों के अनुसार 2014 में कंपनी के पुनर्गठन के बाद उसने चंदा देना बंद कर दिया है। सूत्रों के अनुसार कंपनी को एडवांटेज इंडिया लगातार स्वास्थ्य क्षेत्र में किए गए सामाजिक कार्यों का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट भेजता रहा है।
सौजन्य: जनसत्ता डॉट कॉम