ट्रेन हादसों पर लगाम कसना नहीं रही सरकार के बस की बात!.. मुआवजे का मरहम लगाकर छिपाई कमजोरी

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मुआवजा

देशभर में लगातार हो रहे रेल हादसों पर सरकार की जमकर किरकिरी हो रही है। हाई स्पीड ट्रेन और बुलेट ट्रेन के सपने पर सवाल उठ रहे हैं, रेलवे के फेल होते सिस्टम की कलई खुल रही है। लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि सरकार ट्रेन हादसों पर लगाम कसने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है। महंगे किराए के बावजूद लोगों को सुरक्षित सफर दे पाना भारतीय रेल और सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी है। सुविधाओं के नाम पर किराया तो बढ़ता है लेकिन सुरक्षा की गारंटी नहीं..ऐसे खस्ता हाल में पहुंच चुकी है भारतीय रेल।

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उधर अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए रेल मंत्रालय ने ट्रेन हादसों में मारे जाने वाले लोगों के लिए मुआवजा राशि बढ़ाने की तैयारी की है। ट्रेन हादसे में किसी तरह की अनहोनी होने पर मिलने वाली मुआवजा राशि को केंद्र सरकार दोगुना करने जा रही है। नए साल से ये फैसला लागू हो जाएगा। जानकारी के अनुसार, सरकार ने ट्रेन दुर्घटना में मौत या शारीरिक रूप से अक्षम होने पर दी जाने वाली मुआवजा राशि को दोगुना करने के लिए 1989 के रेलवे अधिनियम के तहत नियमों में संशोधन किया।

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एक आधिकारिक अधिसूचना में बताया गया कि रेलवे दुर्घटना और अप्रिय घटना (मुआवजा) संशोधन नियम, 2016 के तहत मुआवजा राशि चार लाख रुपये से बढ़ाकर आठ लाख रुपये कर दी है। मुावावजा राशि ट्रेन दुर्घटना में मौत होने या हाथ और पैर के खोने पर दी जाएगी। सू़त्रों ने बताया कि जनवरी से अधिसूचना प्रभाव में आ जाएगी।

सवाल येखड़ा होता है कि क्या मुआवजे का मरहम मौत जैसे जख्म को भर पाएगा। जो लोग शानदार और आरामदायक सफर के लिए निकले थे… लेकिन ये सफर उनकी जिंदगी का आखिरी सफर बन गया, भला मुआवजा कभी उनकी जिंदगी की भरपाई कर पाएगा। जो अपने छोटे-छोटे मासूम बच्चों को परिवारों को बिलखता छोड़ रेलवे की कारगुजारी की बलि चढ़ गए, ये मुआवजा उनके बच्चों को एक पिता का प्यार दे पाएगा ???? सवाल ही सवाल हैं लेकिन जवाब शायद यही है कि जब सरकार रेलवे की सुरक्षा दुरस्त नहीं कर पाई..तो मुआवजे का लड्डू थमाकर अपनी खामियों पर पर्दा डालने की कोशिश में लग गई।

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