हलफनामे में कहा गया है कि बिरला समूह पर सीबीआई के छापे और सहारा समूह की कंपनियों पर आयकर विभाग के छापे में अघोषित रकम, डायरी, नोटबुक, ई-मेल समेत कई अन्य दस्तावेज मिले थे। इन दस्तावेजों से साफ है कि इन कंपनियों द्वारा राजनेताओं और नौकरशाहों को रिश्वत दी गई थी।
किसी भी अथॉरिटी ने इन दस्तावेजों की विश्वसनीयता को नकारा नहीं है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को अदालत की निगरानी में विशेष जांच दल से जांच कराने का निर्देश देना चाहिए।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इन दस्तावेजों को शून्य बताते हुए याचिकाकर्ता संगठन को पुख्ता प्रमाण पेश करने के लिए कहा था। गत 16 दिसंबर को हुई सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने सवाल उठाया था कि जस्टिस जेएस खेहर को इस मामले पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि चीफ जस्टिस नियुक्त करने संबंधी उनकी फाइल सरकार के पास लंबित है।
याचिका में कहा गया है कि जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्हें कॉरपोरेट घराने ने रिश्वत दी थी। याचिका में मोदी के अलावा दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर भी रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया है।