अरूण जेटली ने लिखा है कि धार्मिक रीति-रिवाजों और नागरिक अधिकारों में मूल अंतर है। उन्होंने लिखा है कि ‘‘जन्म, गोद लेने, उत्तराधिकार, विवाह, मृत्यु आदि से जुड़े धार्मिक समारोह मौजूदा धार्मिक रिवाजों और प्रथाओं के आधार पर किए जा सकते हैं।’’
उन्होंने लिखा कि ‘‘क्या जन्म, गोद लेने, उत्तराधिकार, विवाह, तलाक आदि से जुड़े अधिकार धार्मिक प्रथाओं पर आधारित होने चाहिए या संविधान द्वारा मिलने चाहिए? क्या इनमें से किसी भी मामले में मानवीय सम्मान के साथ असमानता या समझौता होना चाहिए?’’ जेटली ने लिखा है कि समुदायों में तरक्की होने के साथ ही लैंगिक समानता की बातें बढ़ी हैं।
उन्होंने लिखा है कि ‘‘इसके अतिरिक्त सभी नागरिकों, विशेष रूप से महिलाओं को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। प्रत्येक नागरिक के जीवन को प्रभावित करने वाले पर्सनल लॉ क्या समानता के इन संवैधानिक मूल्यों और सम्मान के साथ जीने के अधिकार के अनुरूप नहीं होने चाहिए?’’
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दो सितंबर को सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि सामाजिक सुधार के नाम पर समुदायों के पर्सनल लॉ को फिर से नहीं लिखा जा सकता और उसने तलाक के मामले में मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाली कथित असमानता के मुद्दे पर दायर याचिकाओं का विरोध किया।