नई दिल्ली। ‘एक साथ तीन बार तलाक बोलने’ को लेकर चल रहे विवाद के बीच केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने रविवार(16 अक्टूबर) को कहा कि सरकार का विचार स्पष्ट है कि पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में हों तथा लैंगिक समानता एवं सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अधिकार के नियमों के अनुरूप होना चाहिए।
‘‘तीन तलाक और सरकार का हलफनामा’’ शीषर्क से फेसबुक पर लिखे पोस्ट में जेटली ने कहा कि अतीत में सरकारें ठोस रूख अपनाने से बचती रही हैं कि पर्सनल लॉ को मूल अधिकारों के अनुरूप होना चाहिए, लेकिन वर्तमान सरकार ने इसपर स्पष्ट रूख अपनाया है।
उन्होंने लिखा है कि ‘‘पर्सनल लॉ को संविधान के दायरे में होना चाहिए और ऐसे में ‘‘एक साथ तीन बार तलाक बोलने’’ को समानता तथा सम्मान के साथ जीने के अधिकार के मानदंडों पर कसा जाना चाहिए। यह कहने की जरूरत नहीं है कि यही मानदंड अन्य सभी पर्सनल लॉ पर भी लागू है।’’
यह रेखांकित करते हुए कि ‘‘एक साथ तीन बार तलाक बोलने’’ की संवैधानिक वैधता समान नागरिक संहिता से अलग है, जेटली ने लिखा है, वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जो मामला है वह सिर्फ ‘‘एक साथ तीन बार तलाक बोलने’’ की संवैधानिक वैधता के संबंध में है।
कानून मंत्रालय ने सात अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कहा था कि बहु-विवाह और ‘‘एक साथ तीन बार तलाक बोलने’’ के चलन को समाप्त करना चाहिए। उसने कहा कि ऐसे चलन को ‘‘धर्म के महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग के रूप में नहीं देखा जा सकता है।’’
जेटली ने लिखा है कि ‘‘समान नागरिक संहिता को लेकर अकादमिक बहस विधि आयोग के समक्ष जारी रह सकती है। लेकिन जिस सवाल का जवाब चाहिए वह यह है कि यह जानते हुए कि सभी समुदायों के अपने पर्सनल लॉ हैं, क्या ये पर्सनल लॉ संविधान के तहत नहीं आने चाहिए?’’
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