भारत और फ्रांस के बीच शुक्रवार को 36 राफेल लड़ाकू विमानों की डील पर साइन हो गया। भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और फ्रांस के रक्षा मंत्री ड्रियान ने इस डील पर हस्ताक्षर किया।
इसे पिछले 20 वर्षों में पहली फाइटर जेट डील बताया जा रहा है। यूपीए शासन में राफेल को लेकर जो डील हुई थी, उसके मुकाबले अभी की डील में करीब 75 करोड़ यूरो (करीब 5,601 करोड़ रुपये) की बचत हो रही है। मोदी सरकार ने यूपीए वाली डील रद्द कर दी थी।
मौजूदा डील में 50 प्रतिशत का ऑफसेट क्लॉज भी है। इसका अर्थ यह है कि भारतीय कंपनियों को इसमें कम से कम 3 अरब यूरो (करीब 22,406 करोड़ रुपये) का बिजनस मिलेगा। राफेल विमान अत्याधुनिक मिसाइलों से लैस होंगे।
डील के मुताबिक फाइटर जेट्स की डिलीवरी कॉन्ट्रैक्ट की तारीख से 36 महीनों में शुरू होगी और 66 महीनों में पूरी हो जाएगी। 36 विमानों की लागत करीब 3.42 अरब यूरो (करीब 25,542 करोड़ रुपये) है। इन्हें हथियारों से लैस करने पर लागत में इजाफा होगा। ऐसे में लागत लगभग 71 करोड़ यूरो (करीब 5,302 करोड़ रुपये) है।
वहीं, भारत की जरूरतों के मुताबिक इसमें बदलाव करने में 170 करोड़ यूरो (करीब 12,696 करोड़ रुपये) की लागत आएगी। इसमें बियॉन्ड विजुअल रेंज मेटियोर एयर टु एयर मिसाइल लगी होगी, जिसकी मारक क्षमता 150 किमी से ज्यादा की है। इसका मतलब यह है कि वायुसेना भारतीय इलाके में रहते हुए भी इन विमानों से पाकिस्तान के भीतर के ठिकानों को निशाने पर ले सकेगी।
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— TIMES NOW (@TimesNow) September 23, 2016
पर काम शुरू होगा। सौदा पक्का होने के बाद विमान की पहली खेप आने में ढ़ाई से तीन साल लग जाएंगे।
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