7000 करोड़ के घोटाले में फँसा है ये अधिकारी है, बचा रहे हैं मोदी के ये मंत्री

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नई दिल्लीः अगर कोई ताकतवर मंत्री चाह ले तो अपने मंत्रालय के भ्रष्टतम अधिकारी को भी बचा सकता है. कुछ ऐसा ही केंद्र सरकार में भी हुआ है. स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा जिस आईएएस अधिकारी को काफी समय से जेल जाने से बचा रहे थे , उसे उन्होंने आखिरकार बचा ही लिया. ये अलग बात कि उनके इस चहेते अधिकारी पर 7000 करोड़ के घपले के गंभीर आरोप थे.

भ्रष्टाचार के मोर्चे पर ‘जीरो टॉलरेंस’ वाली मोदी सरकार का ये एक ऐसा खुलासा है जिसका ज़िक्र ईमानदार छवि वाले प्रधानमंत्री मोदी भी शायद करना नहीं चाहेंगे. खबरिया वेबसाइट इंडिया संवाद डाट कॉम पर छपी खबर के मुताबिक दरअसल इस आईएएस अधिकारी को क्लीन चिट, नड्डा ने खुद अपने हाथों से नहीं दी बल्कि कार्मिक मंत्रालय से दिलवाई है. वो कार्मिक मंत्रालय जिसके मुखिया खुद प्रधानमंत्री हैं. इसलिए जब ये मामला उजागर हुआ तो नड्डा के जुबान पर ताला लग गया . यहाँ तक कि नड्डा ने इन सवालों पर एक बड़े मीडिया ग्रुप को भी अनदेखा कर दिया .

जिस आईएएस अधिकारी को 7000 करोड़ के घपले में बचाने का इलज़ाम है उसका नाम है विनीत चौधरी. स्वास्थ्य मंत्रलय में दबी ज़ुबान में चर्चा है कि चौधरी कई वर्षों से नड्डा के सबसे विश्वासपात्र अफसर रहे हैं. मंत्री नड्डा और अफसर चौधरी दोनों हिमाचल प्रदेश से हैं. कई साल पहले जब हिमाचल प्रदेश में नड्डा मंत्री थे तो विनीत चौधर उनके सचिव हुआ करते थे. चौधरी बाद मे प्रतिनयुक्ति पर दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में उपनिदेशक के पद विराजे. उधर नड्डा ने भी हिमाचल प्रदेश से निकलकर केंद्रीय राजनीति की ओर रुख किया. नड्डा 2014 में बीजेपी के सांसद बने.लिहाजा जब चौधरी पर घपले के इलज़ाम लगने शुरू हुए तो बतौर सांसद नड्डा बचाव में उतरे.

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सीबीआई जांच के मुताबिक चौधरी जब एम्स के उपनिदेशक थे तो उनकी देखरेख में 7000 करोड़ रूपए कंस्ट्रक्शन के काम स्वीकृत हुए थे जिसमे एम्स के कुछ निर्माण काम से लेकर हरियाणा में नया कैंसर अस्पताल बनाने का भी ठेका था. 2012 में एम्स की विजिलेंस जांच में सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर और चौधरी की साठगांठ की बात सामने आयी. एम्स के सीवीओ संजीव चतुर्वेदी ने जांच में चौधरी की ओर इशारा किया और बाद में सीबीआई ने चौधरी और इंजीनियर के खिलाफ जांच दर्ज़ की. सीबीआई ने 2014 जांच में माना कि चौधरी ने घपले के मामले में मंत्रालय को गुमराह किया है और उनके खिलाफ विभागीय करवाई होनी चाहिए. उस वक़्त हर्षवर्धन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री थे. सांसद की हैसियत से नड्डा ने हर्षवर्धन को पत्र लिखकर चौधरी के खिलाफ विजिलेंस जांच रोकने को कहा.कुछ दिन बाद हर्षवर्धन की जगह नड्डा खुद ही मंत्री गए.

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हर्षवर्धन ने मंत्री के हैसियत से मातहत अफसर चौधरी को दोषी पाया था. लेकिन नड्डा के स्वास्थ्य मंत्री बनते ही समीकरण बदल गए. नड्डा की अधीन सवो ने चौधरी के खिलाफ जांच तकनिकी आधार पर रोक दी. बादमे जब मामला मीडिया में उछला तो नड्डा ने एक नायब रास्ता निकला. बतौर मंत्री नड्डा ने कार्मिक मंत्रालय को पत्र लिखा कि वे इस जांच से खुद को अलग करते हैं और कार्मिक मंत्रलाए खुद चौधरी के खिलाफ पड़ताल करे. बहरहाल कार्मिक मंत्रलाए में जाँच गयी या नई गयी , स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाई कोर्ट में पिछले महीने दो मई को हलफनामा दिया कि चौधरी के खिलाफ आरोप साबित नहीं हो पाए।
(खबर इनपुट इंडिया संवाद डाट कॉम)

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