अगर आप दमा और अस्थमा से पीड़ित हैं और इन दिनों पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस आना चाहते हैं तो संभलकर आएं क्योंकि यहां की हवा में उड़ रहे धूल के कण आपकी बीमारी को बढ़ा सकते हैं। और जो लोग इन बीमारियों से ग्रस्त नहीं है वो भी सतर्क रहें क्योंकि बनारस की फ़िज़ा खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुकी है। दीपावली के बाद तो ये प्रदूषण और बढ़ गया है। इस प्रदूषण को खतरनाक स्थिति तक ले जा रहे हैं यहां के कूड़े के ढेर जिनमें नगर निगम खुद ही आग लगा देता है। केवल वाराणसी ही क्यों, उत्तर भारत के कई शहरों की हवा दिल्ली से भी बदतर है। यह जानकारी इंडियास्पेंड के सहयोग से तैयार एक नई रिपोर्ट में सामने आई है।
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 में वायु प्रदूषण पर दर्ज आंकड़ों के 227 दिनों में पिछले साल वाराणसी में अच्छी गुणवत्ता वाली वायु शून्य रही, जबकि 263 दिनों में इलाहाबाद में अच्छी गुणवत्ता वाली वायु शून्य रही।
इन दो शहरों में ऐसा एक दिन भी नहीं पाया गया जब हवा में पीएम 2.5 का स्तर राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता के सुरक्षित स्तर से नीचे पाया गया हो। हम बता दें कि वायु में पाए जाने वाले 2.5 माइक्रोमीटर के व्यास के कणिका तत्व को पर्टीकुलेट मैटर या पीएम 2.5 कहा जाता है। यह रिपोर्ट जून 2016 में जारी किए गए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 2015 के आंकड़ों पर आधारित है।
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