माकपा नेता पॉलिट ब्यूरो की सदस्य वृंदा करात ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी की नीति को सौ फीसद विफल करार देते हुए जमकर हमला बोला है। उन्होने कहा कि अगर उनका एकमात्र एजंडा डिमोनेटाइजेशन (विमुद्रीकरण) है तो हमारा एकमात्र एजंडा डिमोदियाइजेशन (मोदी को हटाना) है।
वृंदा ने नोटबंदी को ध्यान बंटाने की कवायद बताते हुए कहा कि यह एक जनवादी और बहुलवादी संस्कृति का देश है। लिहाजा यहां अपने मन की बात की तुलना देश की बात से करना मुमकिन नहीं है।
माकपा नेता ने सोमवार को जनसत्ता बारादरी में नोटबंदी के मुद्दे पर सवालों के जवाब देते हुए कहा, ‘मोदी सरकार की विमुद्रीकरण की नीति का एजंडा काला धन नहीं है। काले धन का वास्तविक स्रोत विदेशी खाते, दोहरी कर नीति, धन शोधन और जांच एजंसियों की कमजोरी है। लाभ-हानि का विश्लेषण कर अर्थशास्त्री भी कह रहे हैं कि पूरी अर्थव्यस्था चौपट हो रही है।’
करात ने आगे कहा कि हम एक-दो दिन कतार में खड़े हो सकते हैं, लेकिन जब जीविका और नौकरी पर हमला होता है तब निश्चित रूप से नफा-नुकसान की बैलेंसशीट पर यह नोटबंदी सौ फीसद विफल मानी जाएगी।
नोटबंदी पर संसद के भीतर और बाहर सरकार के खिलाफ विपक्ष की लामबंदी में कमियों पर माकपा नेता ने कहा, ‘विपक्ष की भूमिका संसद में एक साथ हो सकती है, क्योंकि सबकी एक ही मांग थी कि 500 और 1000 रुपए के नोट के इस्तेमाल की इजाजत तब तक होनी चाहिए जब तक कि पूरी मशीनरी तैयार नहीं हो जाती है, लेकिन विपक्ष के रूप में संसद के बाहर एक सीमित समझ ही बन सकती थी। बाहर हमें तो कहना ही पड़ेगा कि तृणमूल कांग्रेस का ‘शारदा नारदा’ है… कांग्रेस दूध की धुली नहीं है। एक विपक्ष के रूप में हर किसी का अपना नजरिया है।
वृंदा ने कहा कि मोदी सरकार के लिए वास्तव में नोटबंदी का मुद्दा ध्यान बंटाने और बैंकों की सेहत सुधारने का एक जरिया रहा। वास्तव में ढाई साल पहले किए गए वादों को लेकर मोदी को घेरा जा रहा था तो बचाव में उन्होंने यह नीति पेश कर दी। माकपा नेता ने कहा, ‘नोटबंदी से 11 लाख करोड़ के एनपीए (वसूल नहीं की जाने वाली रकम), जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा कॉरपोरेट के ऋण वापस नहीं किए जाने के कारण था, के जरिए बैंकों को घाटे से उबारा गया। अब छह महीने के बाद उन्हीं अमीरों को दोबारा ऋण दिया जाएगा।’
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