सीमा विवाद : पहले हमला करने के लिए उकसा रहा है चीन, पढ़िए भारत ने क्या की है प्लानिंग

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नई दिल्ली : चीन-भूटान-भारत बॉर्डर ट्राइजंक्शन पर चल रहे गतिरोध के बीच सवाल उठ रहा है कि आखिर इस पूरे विवाद के पीछे चीन की मंशा क्या है? जिस इलाके (डोकलाम) में सड़क निर्माण को लेकर यह पूरा विवाद खड़ा हुआ, उसे लेकर भारत और चीन के बीच कोई सीधा विवाद नहीं है। यह मसला भूटान और चीन के बीच का है। डोकलाम को भूटान अपना हिस्सा मानता है। ऐसे में हो सकता है कि चीन को लगा हो कि भारत, भूटान के बचाव में सामने नहीं आएगा। लेकिन चूंकि भारत डोकलाम पर भूटान के दावे का समर्थन करता है और उसे पता है कि डोकलाम में होने वाले हर विवाद का सीधा असर भारत-चीन बॉर्डर पर भी पड़ेगा ही, ऐसे में भारत ने चीन के कदम का पुरजोर विरोध किया।

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कुछ रिपोर्ट्स में बताया गया है कि चीन के सैनिक पहले भी इस इलाके में घुस चुके हैं और आपत्ति जताने पर उन्होंने भूटान के सैनिकों को पीछे धकेल दिया था। चीन इस इलाके में एक स्थाई सड़क का निर्माण करना चाहता है और इसी को देखते हुए भारत को यहां दखल देना पड़ा। ऐसे में यह माना जा सकता है कि चीनी सैनिकों को सिर्फ भूटान के सैनिकों द्वारा प्रतिक्रिया की उम्मीद थी, जिन पर हावी होने का उन्हें पूरा भरोसा रहा होगा। चीन इस रणनीति के तहत काम करता है कि पहले खाली पड़े इलाकों में अपने सैनिक भेजो, इलाके पर कब्जा करो और फिर चुनौती देने वाले को खुद वार करने के बजाय, उसे पहले हमला करने के लिए ललकारो।

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भारत-चीन बॉर्डर पर भी उसने यही रणनीति अपनाई थी, जिसके नतीजे में दोनों देशों के बीच 1962 का युद्ध हुआ। हालांकि कुछ अपवाद भी हैं, पर ज्यादातर मामलों में चीन की रणनीति में यही रही है कि किसी इलाके पर कब्जा करने के लिए अपनी ‘सैन्य ताकत’ का इस्तेमाल करने के बजाय, अपने ‘सैनिकों की ताकत’ का इस्तेमाल करो। इस काम में अब उसे महारथ हासिल हो गई है। चीन को यह पता है कि एक बार उसके सैनिकों का कब्जा किसी इलाके में हो गया, तो फिर अपनी जबरदस्त सैन्य ताकत के जरिए वह छोटे पड़ोसी देशों को दबा देगा। इसके बाद किसी भी देश पास यही विकल्प बचता है कि वह कूटनाति, अंतरराष्ट्रीय दबाव या अंतरराष्ट्रीय कानून का सहारा ले। लेकिन इन विकल्पों के जरिए ज्यादा कुछ हासिल नहीं होता। फिलीपींस से बेहतर यह कौन जानता है।

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हालांकि इस तरह की रणनीति से कुछ खतरे भी जुड़े हुए हैं। मसलन, साउथ चाइना सी में चीन के आक्रामक बर्ताव का ही नतीजा है कि उसके पड़ोसी देश अमेरिका के साथ अपने सुरक्षा संबंध मजबूत करने में जुटे हुए हैं और साथ ही अमेरिका ने भी चीन को अपने ग्लोबल पार्टनर की तरह देखने के बजाय, एक रणनीतिक प्रतिस्पर्धी और ‘खतरे’ की तरह देखना शुरू कर दिया। इसी तरह चीन ने जब पाकिस्तान को न्यूक्लियर हथियार बनाने में मदद की, भारत ने भी जवाब में अपना परमाणु कार्यक्रम तेज कर दिया। कुल मिलाकर चीन को उसकी आक्रामक रणनीति उलटी पड़ गई।

अगले पेज पर पढ़िए- क्या भारत को भूटान से अलग करना चाहता है चीन ?

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