एक देश के रूप में मनी लॉन्ड्रिंग की हमारी क्षमता पर एक मजबूत केंद्र सरकार और एक कमजोर केंद्रीय बैंक, दोनों ही कुछ ज्यादा भरोसा करते दिख रहे हैं। डीमॉनेटाइजेशन के ऐलान से रद्द हुए 14.5 लाख करोड़ रुपये के करंसी नोटों में से करीब 8 लाख करोड़ रुपये के नोट बैंकों में जमा हो चुके हैं। आने वाले हफ्तों में घोषित और अघोषित करंसी का कुछ और हिस्सा वैध बैंक डिपॉजिट्स में आ जाएगा। सरकार और आरबीआई ने संभवत: इस कैलकुलेशन के साथ यह बड़ा अभियान शुरू नहीं किया था।
शुरुआती समीकरण बेहद आसान था। करीब 4-5 लाख करोड़ रुपये बैंकों में आएंगे, जिन्हें सरकारी प्रयास से सामने आए काले धन के रूप में दिखाया जाएगा और बाद में यह रकम आरबीआई की देनदारी से घटा दी जाएगी जिससे बैंकों को नए सिरे से पूंजी दी जा सकेगी, अफोर्डेबल हाउसिंग प्रोजेक्ट्स को स्पॉन्सर किया जा सकेगा और फिस्कल डेफिसिट कम किया जा सकेगा। बैन करंसी में से कुछ तो शायद कभी भी डिपॉजिट में नहीं बदलेगी, लेकिन सरकारी गलियारों में आशंका पैदा हो रही है कि आंकड़ा कम रह सकता है।
सरकार के लिए यह कोई खुशनुमा नतीजा नहीं होगा। 14.5 लाख करोड़ रुपये का कुछ हिस्सा अगर डिपॉजिट्स में बदल भी जाए तो इसका अर्थ या तो यह होगा कि भारी-भरकम बेनामी कैश को इधर-उधर कर दिया गया या फिर ब्लैक मनी का बड़ा हिस्सा कैश के रूप में नहीं है। इससे विपक्ष को हथियार मिल जाएगा। कांग्रेस और वाम दल इस प्वाइंट को हाथ से नहीं जाने देंगे।