
‘ देश के कुछ बड़े प्राइवेट बैंकों ने भी ऐसा किया। इसके लिए उन्होंने डेलॉयट, ईवाई, पीडब्ल्यूसी और केपीएमजी के फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स हायर किए। बैंकों ने ऐसे मामले की जांच में विशेषज्ञता रखने वाली और बैकग्राउंड का पता लगाने वाली फर्स्ट अडवांटेज जैसी कंपनियों की भी मदद ली।
फाइनैंशल अडवाइजरी सर्विसेज, डेलॉयट टूश तोमात्सु इंडिया एलएलपी के पार्टनर के वी कार्तिक ने बताया, ‘नोटबंदी के बाद कई बैंकों को लगा कि पुराने ढर्रे से काम नहीं चलेगा। इसलिए उन्होंने अपनी तरफ से ब्रांचों में नकली ग्राहक भेजे। बैंक पता लगाना चाहते थे कि फर्जीवाड़ा रोकने के लिए उनका मौजूदा सिस्टम काफी है या नहीं। वे अपनी कमियों के बारे में भी जानकारी हासिल करना चाहते थे।
‘ एक्सपर्ट्स ने बताया कि बैंक एंप्लॉयीज की जांच करने के लिए ऐनालिटिक्स की मदद ले रहे हैं। वे अचानक किसी एंप्लॉयी को चुनते हैं और फिर उसकी जांच की जाती है। बैंकों और फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स ने यह नहीं बताया कि ऐसी जांच में कितने कर्मचारी पकड़े गए और उनके खिलाफ क्या ऐक्शन लिया गया है।