जनसत्ता की खबर के अनुसार, लापरवाही की ये घटना उस वक्त हुई जब देवास बैंक नोट प्रेस के प्रबंध निदेशक (एमडी) एम. एस. राणा थे। राणा पर भ्रष्टाचार के और भी आरोप हैं। राणा पिछली सरकार में सेवा विस्तार लेते रहे थे लेकिन मोदी सरकार ने उन्हें नोटबंदी की प्रक्रिया शुरू करने से दो महीने पहले ही पद से हटा दिया था।
सितंबर 2013 में रिजर्व बैंक गवर्नर के कार्यकाल पूरा कर लेने के एक महीने बाद तक यह कंपनी उसी गवर्नर के हस्ताक्षर से उच्च मूल्य के करेंसी नोट छापती रही। इस सरकारी कंपनी के छापेखाने देवास और नासिक में हैं।
आपको बता दे कि द भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड (बीआरबीएनएमपीएल) रिजर्व बैंक के अधीन और नामित कंपनी है जो करेंसी नोट की डिजायन, प्रिंटिंग प्लेट्स और गवर्नर के हस्ताक्षर एसपीएमसीआईएल कंपनी को उपलब्ध कराती है।
रिर्पोट के अनुसार, बीआरबीएनएमपीएल ने मुद्रण कंपनी को गवर्नर के हस्ताक्षर का मशीन प्रूफ भी सौंपा था। बावजूद इसके डी सुब्बाराव के हस्ताक्षर वाले नोट छापे गए। मार्च 2015 तक करीब 37 करोड़ रुपये मूल्य के 20 रुपये, 100 रुपये और 500 रुपये के 2 करोड़ 30 लाख नोट स्टॉक में पड़े थे। इन सभी करेंसी नोटों की छपाई पूर्व गवर्नर के हस्ताक्षर के साथ साल 2014 तक हुई है। अब इस बात की भी संभावना है कि रिजर्व बैंक इन नोटों को स्क्रैप कर दे।