नई दिल्ली। न्यायिक नियुक्तियों पर छिड़ी बहस के बीच केंद्र सरकार ने शुक्रवार(19 अगस्त) को कहा कि वह उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति निर्देशित करने के लिए मौजूदा दस्तावेज में पूरक व्यवस्था करने की शक्ति उच्चतम न्यायालय के उस फैसले से प्राप्त कर रही है, जिसमें इस प्रक्रिया को पारदर्शी एवं जवाबदेह बनाने पर जोर दिया गया था।
प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) के पुनरीक्षित मसौदे का हवाला देते हुए केंद्रीय कानून मंत्रालय के उच्च-पदस्थ सूत्रों ने पीटीआई से कहा कि दस्तावेज उच्चतम न्यायालय की एक पीठ द्वारा दिए गए ‘न्यायिक निर्देशों’ पर आधारित है।प्रक्रिया ज्ञापन के अहम प्रावधानों पर मतभेद सुलझाने को लेकर कार्यपालिका एवं विधायिका के प्रयासों के बीच सूत्रों ने दिसंबर 2015 में उच्चतम न्यायालय के उस आदेश की ओर इशारा किया, जिसमें कोलेजियम प्रणाली में सुधार के तौर-तरीकों पर जोर देते हुए कहा गया था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रणाली पारदर्शी और जवाबदेह होनी चाहिए और पीठ में नियुक्त किए जाने वाले उम्मीदवारों पर विचार का दायरा व्यापक होना चाहिए।
सरकार के रूख को विस्तार से बताते हुए सूत्रों ने बताया कि केंद्र चाहता है कि उम्मीदवारों के नाम उच्चतम न्यायालय और सभी उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से आना चाहिए। उन्होंने बताया कि किसी विशेष उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय के कोलेजियम को नाम सुझाने की आजादी मिलनी चाहिए और कोलेजियम ही अंतिम फैसला करेगा कि नियुक्ति के लिए किसकी सिफारिश करनी है।
सूत्रों ने बताया कि उच्चतम न्यायालय के लिए भी यही व्यवस्था होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय इसी सिद्धांत का पालन कर रहा है। सरकार ने बीते तीन अगस्त को कोलेजियम को प्रक्रिया ज्ञापन का पुनरीक्षित मसौदा भेजकर उन प्रावधानों को दोहराया था, जिन पर न्यायपालिका को आपत्तियां हैं।