प्लास्टिक के चावल ही नहीं, प्लास्टिक के दाल भी बना रहा है चीन ? देखिए वीडियो

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प्लास्टिक

हाल में प्लास्टिक से बने नक़ली चावलों की ख़बरें जानने में आई थीं। तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड समेत देश के अन्य हिस्सों से लोगों ने बताया कि उन्हें प्लास्टिक से बने चावल मिले हैं। इन ख़बरों के फ़र्ज़ी होने की भी बात सामने आई थी, हालाँकि जाँच की जा रही है। इस बीच इन ‘चावलों की बिक्री’ को यूनिवर्सिटी ऑफ ऐग्रिकल्चरल सायंस ने झूठा बताया है।

लेकिन सोशल मीडिया पर लोगों को डराने का काम जारी है। हमेशा की तरह इस बार भी डराने का हथियार है, चीन! यह नाम ले-लेकर ‘युद्ध’ से लेकर ‘नक़ली चावल’ तक हमें डराया जाता है। दरअसल ‘नक़ली चावलों’ को चीन से जोड़ते हुए कुछ विडियोज़ इन दिनों ख़ूब वायरल हो रहे हैं। मामला क्या है, यह आप इन पोस्ट में देख सकते हैं,

हमने जाँच की तो ऐसे कई विडियो मिले जिनमें प्लास्टिक से बने कई मटीरियल, जैसे पॉलीथीन, को रीसाइकल किया जा रहा था। अब सवाल उठता है कि क्या ये सभी फ़ैक्ट्रियाँ चीन की हैं और सभी में प्लास्टिक के चावल बनाए जा रहे हैं? खोजबीन के दौरान हमें कथित नक़ली चावलों के अलावा ‘नक़ली दाल’ भी दिखी। चीन में नहीं भारत में, यह देखिए

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घबराइए मत। यह ‘नक़ली दाल’ नहीं है। लेकिन हमारे यहाँ इसे चीन में बनी नक़ली दाल बताकर आसानी से लोगों को डराया जा सकता है, और वे डरेंगे। बाद में ख़बर फ़र्ज़ी निकलेगी, क्योंकि इन दाल की सच्चाई दरअसल यह है। विडियो देखें,

प्लास्टिक से बनीं चीज़ों की रीसाइकलिंग के लिए भारत में यह अत्याधुनिक मशीन इस्तेमाल की जा रही है। इस तरह के प्रोसेस में प्लास्टिक ग्रेन्स बनाए जाते हैं जो देखने में किसी अन्न या बीज जैसे लगते हैं। ये ग्रेन्स सफ़ेद हों तो चावल बता दो, पीले हों तो दाल बता दो और जम के क्लिक्स पाओ। ऊपर जिन विडियोज़ को नक़ली चावल बनाने के प्रोसेस का नाम दिया गया है, वे दरअसल प्लास्टिक रीसाइकलिंग के विडियो हैं। आपको यूट्यूब या गूगल पर केवल ‘plastic recycliing’ लिखना है, आप आसानी से इन नक़ली चावलों का सच जान जाएंगे। यूट्यूब चैनल GabeHashTV ने इस झूठ का सच बताया है। नीचे विडियो देख सकते हैं।

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साफ़ है कि ये विडियो प्लास्टिक के चावल बनाने के नहीं बल्कि प्लास्टिक रीसाइकलिंग के विडियो हैं। भारत की ही फ़ैक्ट्रियों के विडियो आपको यूट्यूब पर मिल जाएंगे। लिखिए ‘plastic recycling in India’। इसी तरह कॉटन और अन्य मटीरियल्स की रीसाइकलिंग के विडियो भी आपको आसानी से मिल जाएंगे। वैसे भी GabeHashTV ने बताया है कि ये प्लास्टिक के चावल नहीं बल्कि फ़ाइबर ग्रेन्स हैं जिनका इस्तेमाल सोफ़ा और तकिये बनाने में किया जाता है। यह भी कहा गया है कि अभी तक प्लास्टिक के चावल नहीं बनाए जा रहे हैं।

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ख़ैर, इस विडियो जैसी ही बात यूनिवर्सिटी ऑफ ऐग्रीकल्चरल सायंस ने भी कही है। यूनिवर्सिटी की जाँच में सामने आया कि प्लास्टिक से बने इन चावलों की कीमत 200 रुपये प्रति किलो होगी, जबकि सामान्यतः चावल 40-50 रुपये किलो बिकता है। उपभोक्ताओं को नक़ली और बाज़ार में मौजूद असली चावलों के मुक़ाबले महंगा चावल बनाकर बेचने का घाटे का ग़लत धंधा कौन करना चाहेगा? उपभोक्ताओं को छोड़ भी दें, दुकानदार इतना महंगा चावल क्यों बेचेंगे जिसे कोई नहीं ख़रीदेगा? पूरी ख़बर जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।

चलते-चलते रद्दी के माल को पीसने के लिए मशीनें बनानी वाली एक भारतीय कंपनी का यह विडियो देखते जाइए जिसमें प्लास्टिक के ग्रेन्स (यानी ‘प्लास्टिक के चावल’) बनाए जा रहे हैं। बिल्कुल वही प्रोसेस है।