झुग्गी में रहने से IAS बनने तक का सफर, उम्मुल खेर के हौसले की कहानी

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उम्मुल खेर

यह कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसने अपने हौसले से हासिल किया ऐसा मुकाम जिसे पाने के लिए लाखों भारतीय दिन-रात जी तोड़ मेहनत करते हैं। यह कहानी है उम्मुल खेर की। पढ़ाई के लिए पैसा नहीं था और ना ही शरीर का साथ। उम्मुल को एक ऐसी बीमारी है जिसमें हड्डियां बेहद कमजोर हो जाती हैं और छोटी से भी फ्रैक्चर होने का खतरा रहता है। इसके बावजूद उम्मुल ने इस साल यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में शानदार कामयाबी हासिल की है। जैसा की सब जानते हैं सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाला हर छात्र कड़ी मेहनत और तमाम अड़चनों से होकर गुजरता है। लेकिन उम्मुल का इस परीक्षा में सफल होना बहुत से मायनों में अलग है। राजस्थान की निवासी उम्मुल पांच साल की उम्र में दिल्ली आ गई थीं।

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दिल्ली में उनका बचपन हजरत निजामुद्दीन स्टेशन के पास झुग्गियों में बीता। उनके पिता स्टेशन के पास छोटे-मोटे सामान बेचा करते थे। कुछ सालों बाद झुग्गियां वहां से हटा दी गईं और उम्मुल का परिवार बेघर हो गया।

इसके बाद वे त्रिलोकपुरी में एक सस्ता सा कमरा लेकर रहने लगे। उनके पिता का काम भी छूट गया था। ऐसे में सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली उम्मुल ने मोर्चा संभाला और आस-पास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगीं।

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इसके बदले में में उन्हें 50-60 रुपे मिलते थे जिससे घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चल पाता था। उम्मुल की अपनी मां का इंतकाल हो चुका था और वह अपनी सौतेली मां के साथ रहती थीं। आठवीं के बाद उनकी पढ़ाई बंद कराने की बात होने लगी।

इसके बाद नवीं क्लास में पढ़ने वाली उम्मुल अकेले रहने लगीं और ट्यूशन पढ़ाते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी। वह सुबह स्कूल जाती थीं और रात में ट्यूशन पढ़ाया करती थीं। स्कूल में उन्हें स्कॉलरशिप मिली और उन्होंने टॉप भी किया, जिससे उन्हें हिम्मत मिली। फिर उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अप्लाइड साइकॉलजी में बीए किया।

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उम्मुल कहती हैं कि उन्होंने हमेशा खुद को बहुत खुशकिस्मत माना क्योंकि मुश्किल हालात में उन्हें पढ़ने का मौका मिला। वह कहती हैं,”मकसद को पाने के लिए जुनून होना चाहिए। आप अपने सकारात्मक पक्ष को इतना मजबूत बनाइए कि उसके सामने बाकी चीजें बौनी हो जाएं। अगर आप कोई सपना देख लें और उसके लिए ईमानदार हो जाएं तो प्रेरणा भी खुद मिल जाती है।”