हॉकी चैंपियन ने कहा हॉकी को अलविदा, नहीं सह पाई कोच और अधिकारियों की ‘डर्टी पॉलिटिक्स’ !

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रितु की कप्तानी में ही भारतीय महिला टीम ने 36 साल के अंतराल बाद रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था। उनकी कप्तानी में ही राष्ट्रीय टीम ने 2014 इंचियोन एशियाई खेलों में कांस्य और 2013 एशियाई चैम्पियंस ट्रॉफी में रजत पदक जीता था।

रितु रानी का अब तक खेल का सफर उपलब्धियों से भरा रहा है। द्रोणाचार्य अवॉर्डी बलदेव कोच के मार्गदर्शन में 12 साल की आयु में शाहाबाद हॉकी नर्सरी में खेलना शुरू किया था और मात्र 14 वर्ष की आयु में ही 2006 में मैड्रिड में हुए वर्ल्ड कप में भारतीय टीम का हिस्सा थीं और पूरी टीम में सबसे छोटी थीं।

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साल 2009 में रूस में हुए चैंपियन चैलेंज में भारतीय टीम ने जीत हासिल की थी जिसमें रितु रानी 8 गोल करके टूर्नामेंट की टॉप स्कोरर रही थी। इन्हीं उपलब्धियों को बदौलत 2011 में भारतीय टीम का कप्तान बनाया गया था और उनकी अगुवाई में 2013 के एशिया कप और 2014 की एशियन खेलों में टीम तीसरे स्थान पर रही थी।

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साल 2014-15 की वुमन एफआईएच हॉकी वर्ल्ड लीग में रानी ने भारत में हुए दूसरे राउंड में नेतृत्व करते हुए टीम को प्रथम स्थान दिलवाया था और वर्ल्ड लीग सेमीफाइनल में भी टीम को लीड किया था। इसी की बदौलत भारतीय महिला हॉकी टीम ने जापान में हुए क्वॉलिफिकेशन मैच में पांचवां स्थान पाया था।

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इसके बाद ही भारत ने रियो ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफाई किया था। रितु में न केवल रक्षा पद्धति में खेलने का महारथ हासिल की बल्कि एक बहुत अच्छी फॉरवर्ड प्लेयर भी रहीं।

वीडियो में देखिए- हॉकी के मैदान में परचम लहराने वाली, रितु रानी की कहानी

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