आखिरकार लंबी कानूनी लड़ाई और विरोध प्रदर्शनों के बाद महिला कार्यकर्ताओं के एक समूह ने मंगलवार को मुंबई के वरली तट के निकट एक छोटे से टापू पर स्थित हाजी अली दरगाह के मुख्य हिस्से में प्रवेश किया और चादर चढ़ाई।
इस दौरान उन्हें किसी विरोध का कोई सामना नहीं करना पड़ा। बीते 24 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने दरगाह के अंदरूनी हिस्से में महिलाओं को जाने की अनुमति दी थी। जून 2012 तक महिलाओं को मुस्लिम संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की मजार के गर्भगृह तक प्रवेश की अनुमति थी, लेकिन उसके बाद गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी। गौरतलब है कि वर्ष 2014 में भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) और कई अन्य ने हाजी अली दरगाह के इस कदम को अदालत में चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति वी. एम. कनाडे और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-धेरे की खंडपीठ ने 26 अगस्त को फैसला सुनाते हुए महिलाओं को दरगाह के प्रतिबंधित मजार क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति दे दी थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने 24 अक्टूबर को महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार के आधार पर अपने फैसले में महिलाओं को दरगाह में प्रवेश की अनुमति दी थी। नई व्यवस्था के तहत पुरुषों और महिलाओं को दरगाह में जाने का समान अधिकार होगा और सभी श्रद्धालु मजार से करीब दो मीटर की दूरी से दुआ कर सकेंगे। बीएमएमए की सहसंस्थापक नूरजहां एस. नियाज ने कहा, “यह समानता, लैंगिक भेदभाव खत्म करने और हमारे संवैधानिक अधिकारों को समाप्त करने की लड़ाई थी। हम खुश हैं कि अब महिलाओं और पुरुषों को पवित्र गर्भगृह में प्रवेश का समान अधिकार मिलेगा।”