पीडीपी के एक बड़े नेता का बयान- ISIS से जुड़ सकते हैं विरोध प्रदर्शन कर रहे कश्मीरी

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अंतरराष्ट्रीय धार्मिक कट्टरता

कश्मीर अंतरराष्ट्रीय धार्मिक कट्टरता की चपेट में आ सकता है। ऐसा मानना है, जम्मू-कश्मीर के पूर्व डिप्टी सीएम और राज्य में सत्ताधारी पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) सांसद मुज़फ्फर हुसैन बेग का। उन्होंने आशंका जताई है कि छह दशकों से जारी संघर्ष के वजह से कश्मीर अंतरराष्ट्रीय धार्मिक कट्टरता की चपेट में आ सकता है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कश्मीर मुद्दे सभी पार्टियों के संग हुई बैठक में भी बेग राज्य में उभरते धार्मिक कट्टरता के आईएसआईएस से जुड़ने की आशंका जता चुके हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार से ताजा बातचीत में बेग ने कहा कि घाटी में पनपते धार्मिक कट्टर पंथ से निपटने के लिए नई रणनीति बनानी होगी।

बेग ने अखबार से कहा कि घाटी में संघर्ष अपने चौथे चरण में है। बेग के अनुसार, “कश्मीर के संघर्ष के इस चौथे चरण के धार्मिक चरमपंथ में बदलने का खतरा है, जिसके पीछे धार्मिक नहीं राजनीतिक नजरिया है। इसके अनुसार मुसलमानों का अपना अलग राज्य होना चाहिए और वो हिन्दू राष्ट्र में नहीं रह सकते।” बेग का मानना है कि भारत विभाजन और मोहम्मद अली जिन्ना के दो राष्ट्र के सिद्धांत की “सीधी विरासत”  से उपजा कश्मीर का मौजूदा संकट पहले से बुरी स्थिति में है।

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बेग ने अखबार से कहा, “आतंकवाद ने कश्मीर को 1990 में गिरफ्त में लिया, हजारों कश्मीरी मुसलमान और कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई फिर भी ये एक स्थानीय संघर्ष था। ये खिलाफत (इस्लामी राज्य) के वैश्विक नजरिए और धार्मिक कट्टरपंथी वर्चस्व का हिस्सा नहीं था। अब इसके वैश्विक संघर्ष का हिस्सा बनने का खतरा है।” बेग ने आशंका जताई कि कश्मीर में हिंसा पहले से बढ़ सकती है। बेग 2002 से 2006 तक जम्मू-कश्मीर के कानून और संसदीय कार्य मंत्री रह चुके हैं।

बेग ने अखबार को बताया, “अब तक बुजुर्ग और ग्रामीण जनता कश्मीर में वोट देती थी। उग्रवाद के ग्रामीण इलाकों में पहुंचने से इस पर खतरा है। ऐसा लगता है कि धार्मिक कट्टरपंथ नौजवानों के दिलो-दिमाग में जगह बना रहा है।” उन्होंने आगे कहा, “महिलाएं भी संघर्ष में हिस्सा ले रही हैं। वो बड़े पैमाने पर नहीं शामिल हो रही हैं लेकिन पैलेट गन और बल प्रयोग से वो केंद्रीय भूमिका में सामने आने लगी हैं।”

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शेख ने कश्मीर के पहले के तीन चरणों की व्याख्या करते हुए कहा कि पहला चरण 1953 से 1975 का था जब मुख्य मुद्दा शेख अब्दुल्ला की रिहाई और सत्ता में वापसी केंद्र में था। दूसरा चरण 1975 से 1987 है जब स्वायत्ता की मांग उठी। बेग कहते हैं, “तीसरा चरण 1987 से शुरू हुआ जब चुनावों मे बड़े पैमाने पर धांधली की गई। मेरे ख्याल से जिसने सबसे गहरा घाव दिया। इसने चुनावी मैदान में उतरे यूसुफ शाह को सैयद सलाहुद्दीन (हिज्बुल मुजाहिद्दीन और यूनाइटेड जिहाद काउंसिल का प्रमुख) में बदल दिया। यासिन मलिक को एक नौजवान से आजाद कश्मीर के चेहरे के रूप में बदल दिया। बहरहाल, आजादी या पाकिस्तान में शामिल होने की मांग राजनीतिक है।” अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई करने वाले बेग मानते हैं कि घाटी में संघर्ष का चौथा चरण अरब क्रांति के बाद शुरू हुआ। बेग कहते हैं, “कई देशों ने अरब क्रांति को दोहराना चाहा। उन गलतियों के कारण अब धार्मिक कट्टरपंथ और खिलाफत के पूरी दुनिया में उभरने का खतरा है। खिलाफत में पूरी दुनिया के मुसलमान एक राजनीतिक नेतृत्व के तहत आ जाते हैं। इस बार खिलाफत का दावा किसी राजनीतिक पार्टी ने नहीं बल्कि एक कट्टरपंथी धार्मिक संगठन (आईएसआईएस) ने किया है, जो आतंक के इस्तेमाल में यकीन करता है।”

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इससे पहले बेग ने कश्मीर पर सभी पार्टियों की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा था कि कश्मीर के मदरसों धार्मिक कट्टरपंथ की शिक्षा दी जा रही है। कश्मीरी बच्चों को संदर्भविहीन ढंग से धार्मिक ग्रंथ पढ़ाए जा रहे हैं। अब घाटी में खिलाफत के उभार की आशंका है जो आईएसआईएस में बदल सकता है। राज्य के नौजवान इसके प्रति आकर्षित हो सकते हैं।