राम गोपाल अखिलेश के लिए बड़े फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने ही पार्टी का अधिवेशन बुलाया, जिसमें मुलायम को बेदखल करके अखिलेश को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। राम गोपाल ही पार्टी के झगड़े को चुनाव आयोग के पास ले गए। इसके बाद ही आयोग ने अखिलेश के समर्थन में फैसला दिया और पार्टी के चुनाव चिह्न साइकल पर अखिलेश के दावे पर मुहर लगाई।
दोनों खेमों के बीच की तल्खी चुनाव प्रचार और नतीजों के बाद तक नजर आई। जहां पार्टी के सबसे बड़े नेता मुलायम ने अखिलेश के लिए कोई चुनाव प्रचार नहीं किया, वहीं चुनाव हारने के बाद शिवपाल ने कहा कि यह समाजवादी पार्टी की नहीं, बल्कि घमंड की हार है। मुलायम ने सिर्फ शिवपाल और अपनी छोटी बहू अपर्णा के लिए प्रचार किया था। वह इस बात से भी नाराज थे कि उनकी राय को नजरअंदाज करके अखिलेश ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का फैसला किया। चुनावी नतीजों के बाद मुलायम ने यह बात दोहराई कि अगर यह गठबंधन न होता तो एसपी जरूर सत्ता पर काबिज होती।