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तीस हजारी अदालत के विशेष जज ब्रजेश कुमार गर्ग ने आदेश में कहा कि यह आरटीआइ उन्हें सीबीआइ के खिलाफ प्रतिकूल राय बनाने से रोकती है। साथ ही निष्कर्ष भी निकालती है कि मान सिंह नामक यह सरकारी गवाह छापेमारी के दौरान सीबीआइ के साथ मौजूद ही नहीं था। हैंडिंग ओवर मेमो, रिकवरी मेमो, स्कैच मैप, तलाशी एवं गिरफ्तारी मेमो पर गवाह के हस्ताक्षर बाद में लिए गए। छापेमारी से पूर्व की कार्यवाही के दौरान उक्त गवाह की मदद लेने के बजाए जांच अधिकारी ने नील कमल नामक एक अन्य गवाह की मदद ली। जिसे यह निष्कर्ष और मजबूत होता है। अदालत ने पूछा जब मान सिंह छापेमारी की पूरी कार्यवाही के दौरान मौजूद था तो फिर नील कमल की सेवाएं लेने की जरूरत क्यों पड़ गई। यह सीबीआइ की जांच पर गहरे प्रश्नचिन्ह लगाता है।
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