नजमा ने कहा कि एक साथ ‘तीन बार तलाक’ कह कर तलाक नहीं दिया जा सकता। इसके लिए तीन महीनों में तीन मौकों पर ऐसा किया जाता है और मध्यस्थता की प्रक्रिया का पालन करना होता है। उसके बाद ही तलाक होता है। जिस तरह से वे इसकी व्याख्या कर रहे हैं वह इस्लामी नहीं है और सही नहीं है। पाकिस्तान सहित ज्यादातर मुस्लिम देशों ने इसे स्वीकार किया है। इस विवादित मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए हेपतुल्ला ने कहा कि जो लोग ‘तलाक, तलाक, तलाक’ की बात कर रहे हैं वे इस्लाम की गलत व्याख्या कर रहे हैं और उनके पास धर्म को बदनाम करने का कोई अधिकार नहीं है।
गौरतलब है कि इस महीने की शुरूआत में कानून एवं न्याय मंत्री ने उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल कर कहा था कि तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह परंपरा की वैधता के मुद्दे पर लैंगिक न्याय और गैर भेदभाव, गरिमा एवं समानता के सिद्धांतों के आलोक में विचार किए जाने की जरूरत है।