समाजवादी पार्टी के एक अन्य नेता कहते हैं, ‘मुस्लिम और यादव समुदाय पार्टी का सबसे बड़ा वोट बैंक है। मुलायम सिंह के बाद शिवपाल इन दोनों ही समुदायों के बीच पार्टी के सबसे स्वीकार्य नेता हैं। पार्टी के लिए आगामी चुनाव में इन दोनों समुदायों का अधिकटम वोट पाने के लिए मुलायम को शिवपाल के सहयोग की जरूरत पड़ेगी। वहीं, शिवपाल की पार्टी कार्यकर्ताओं के आलावा आम लोगों में भी अच्छी पकड़ है। अखिलेश इस मामले में अपने चाचा शिवपाल से पीछे ही हैं। मुख्यमंत्री जहां हर सप्ताह लखनऊ स्थित अपने आवास पर आम लोगों के समस्याओं के समाधान के लिए जनता दरबार का आयोजन करते हैं वहीं, शिवपाल ऐसी बैठक हर रोज करते हैं। वो लोगों की परेशानियों सुनते हैं और उनके सामने ही संबंधित अधिकारियों को फोन लगाकर इस संबंध में कार्रवाई करने का निर्देश देते हैं, इससे आम लोग के बीच शिवपाल को लेकर एक विश्वास की भावना है।’
इटावा के जसवंतनगर विधानसभा सीट से चौथी बार चुनाव जीतने वाले शिवपाल यादव की पार्टी में अन्य पक्षों से बातचीत करने और किसी भी तरह के विवाद में संकट मोचन की भूमिका निभाने वाले नेता की छवि है। विधानसभा चुनावा के मद्देनजर कौमी एकता दल के साथ हुए हालिया समझौते में शिवपाल ही पार्टी की तरफ से पहल करने वाले नेता थे। समाजवदी पार्टी में अमर सिंह की वापसी में भी शिवपाल ही मुख्य भूमिका में रहे। पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता बेनी प्रसाद वर्मा को पार्टी में फिर से वापस लाने का श्रेय शिवपाल को ही जाता है।
हाल फिलहाल समाजवादी पार्टी में चाचा भतीजे के बीच चल रहे घमासान से कार्यकर्ताओं में निराशा है और वे इस विवाद के जल्द से जल्द शांत होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। शिवपाल और अखिलेश को नेता जी का दोनों हाथ बताते हुए एक पार्टी नेता का कहना है, ‘मुलायम चाहते हैं कि अखिलेश आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अपनी बेदाग छवि के साथ प्रचार पर अपना ध्यान केंद्रीत करें और पार्टी और संगठन की जिम्मेदारी शिवपाल पर छोड़ दें। शिवपाल संगठन के काम से भली भांति परिचति हैं और पार्टी के लिए समर्थन जुटाने में अखिलेश से ज्यादा महत्वपूर्ण भी हैं।’ शायद यही वजह है कि मुलायम किसी भी कीमत पर शिवपाल के साथ खड़े रहना चाहते हैं और इसके लिए यदि अखिलेश की इच्छा के विरुद्व भी जाना पड़े तो उसके लिए भी तैयार हैं।































































