आज देश के लिए बड़ा दिन है। दरअसल इसरो ने नया इतिहास रचा है। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से पहली बार स्वदेशी पुन: इस्तेमाल किए जा सकने वाला प्रक्षेपण यान (आरएलवी) प्रक्षेपित किया है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख किरण कुमार ने प्रायोगिक आरएलवी के महत्व को समझाते हुए कहा कि यह मूल रूप से अंतरिक्ष में बुनियादी संरचना के निर्माण का खर्च कम करने की दिशा में भारत द्वारा की जा रही एक कोशिश है। उन्होंने कहा कि अगर दोबारा इस्तेमाल किए जा सकने वाले रॉकेट से अंतरिक्ष तक पहुंच का खर्च दस गुना कम हो सकता है।
दैनिक भास्कर के मुताबिक अभी ऐसे रियूजेबल स्पेस शटल बनाने वालों के क्लब में अमेरिका, रूस, फ्रांस और जापान ही हैं। चीन ने कोशिश तक नहीं की है। एसयूवी जैसा दिखने वाला यह स्पेस शटल अपने ओरिजिनल फॉर्मेट से छह गुना छोटा है। टेस्ट के बाद इसको पूरी तरह से तैयार करने में 10 से 15 साल लग जाएंगे।
RLV-TD की ये हाइपरसोनिक टेस्ट फ्लाइट रही। शटल की लॉन्चिंग रॉकेट की तरह वर्टिकल रही। इसकी स्पीड 5 मैक (साउंड से 5 गुना ज्यादा) थी। साउंड से ज्यादा स्पीड होने पर उसे मैक कहा जाता है।
आईबीएन 7 के मुताबिक इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अमेरिकी अंतरिक्ष यान की तरह दिखने वाले डबल डेल्टा पंखों वाला यान को एक स्केल मॉडल के रूप में प्रयोग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है जो अपने अंतिम संस्करण से करीब छह गुना छोटा है। 6.5 मीटर लंबे ‘विमान’ जैसे दिखने वाले यान का वजन 1.75 टन है और इसे एक विशेष रॉकेट वर्धक से वायुमंडल में पहुंचाया गया।
श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किए जाने के बाद यह बंगाल की खाड़ी में तट से करीब 500 मीटर की दूरी पर आभासी रनवे पर उतरा। सरकार ने आरएलवी-टीडी परियोजना में 95 करोड़ का निवेश किया है।