नई दिल्लीः यूपी विधानसभा चुनाव में वोटबैंक की वफादारी और बेवफाई देखने वाली बात होगी। वोटर जिसके साथ बेवफाई करेगे उसके लिए 11 मार्च कयामत की रात होगी। अखिलेश की मुट्ठी से अगर गैर यादव ओबीसी फिसलते हैं और उधर मायावती से गैर जाटव दलित बेवफाई पर उतरें, यानी 2014 के लोकसभा चुनाव का एक्शन रिप्ले हुआ तो यूपी की सत्ता से भाजपा का 14 साल का वनवास खत्म हो सकता है। यानी भाजपा सरकार बनाने की मुराद पूरी कर पाएगी। यूपी में 29 से 30 प्रतिशत वोट मिलना यानी बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचना है।
2012 में जब विधानसभा चुनाव हुए थे तो सपा को 29.13 फीसदी और बसपा को 25.91 फीसदी मत मिले थे। वहीं 2007 विधानसभा चुनाव में बसपा को 29.5, समाजवादी पार्टी को 25.5 फीसदी मत मिले थे। यानी कि 2007 में जहां सपा खड़ी थी, वहीं पर 2012 में बसपा खड़ी हो गई, जहां 2007 में बसपा खड़ी थी वहां 2012 में सपा खड़ी हो गई। समाजवादी पार्टी के नेताओं का कहना है कि अगर मान लीजिए एंटीइन्कमबेंसी फैक्टर कुछ होगा तो भी बमुश्किल पांच प्रतिशत वोट काटेगा। जो हम कांग्रेस गठबंधन से पूरा कर रहे हैं। इस प्रकार सपा 30 प्रतिशत वोट पाने की स्थिति में है। उधर बसपा का कहना है कि 2012 में 25 प्रतिशत वोट तक सीमित रहने से पार्टी सत्ता में दूर रही। अब सिर्फ पांच प्रतिशत वोट चाहिए। इस बार सौ से अधिक मुसलमानों को टिकट देकर दलित-मुस्लिम और अन्य समीकरण से पांच प्रतिशत वोट का जुगाड़ हो जाएगा। लिहाजा बसपा 30 प्रतिशत वोट पाकर सरकार बनाएगी। हालांकि सपा और बसपा को 2014 के आंकड़ों पर नजर जरूर डालना चाहिए। जबकि लोकसभा चुनाव में सपा के 30 और बसपा के 25 प्रतिशत वोट का आंकड़ा हवा हो गया था और भाजपा 17 से 42.3 फीसदी पर पहुंची थी। वहीं बसपा को 19.5 फीसदी और सपा को 22.6 फीसदी मत प्राप्त हुए थे। वहीं कांग्रेस को 11% मत 2012 में और 2007 में 8% से ज्यादा वोट मिले।
अगले पेज पर पढ़िए यूपी जीतने का बीजेपी का क्या है फॉर्मूला