जिस पूर्वांचल ने 11 मुख्यमंत्री और 4 प्रधानमंत्री दिए, आज वही रो रहा है बदहाली का रोना, जिम्मेदार कौन?

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पूर्वांचल
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उत्तरप्रेदश में अब तीन चरणों की वोटिंग बची है, लेकिन इलाका एक ही है पूर्वांचल, जी हां यूपी चुनाव की गाड़ी पूर्वांचल में दाखिल हो चुकी है। गाड़ी में सवार नेताओं की फौज यूपी के इस खास इलाके में पहुंचने लगी है। राज्य को 11 मुख्यमंत्री देने वाला यह इलका आज भी पिछड़ा हुआ है। पूर्वांचल आज भी उन बुनियादी सुविधाओं की वाट जोह रहा है जो इस इलाके में बहुत पहले पहुंच जानी चहिए थी। पूर्वांचल की बदहाली पर सब एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर रहे हैं लेकिन असल में किसी भी सरकार ने यहाँ की स्थिति के बारे में ध्यान नहीं दिया तभी तो प्रदेश को 11 मुख्यमंत्री देने वाला पूर्वांचल का 11 आने भी विकास नहीं हो पाया है।

पूर्वांचल की मुख्य समस्याएं

विकास यात्रा में अब तक पिछड़े पूर्वांचल में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, भ्रष्ट्राचार, कानून व्यवस्था जैसी समस्याएं आज जस की तस बनी हुई हैं। यूपी के सबसे ज्यादा जनसंख्या घनत्व वाले इस इलाके में सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी और गरीबी की है।

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इन समस्याओं से जूझ रहे इस इलाके में प्रकृति की मार भी समय-समय पर पड़ती रहती है। बाढ़ और सूखे की वजह से इलाके के किसान साल दर साल गरीब होते जा रहे हैं और मध्यम वर्ग के युवाओं को नौकरी न मिलने की वजह से बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।

बाढ़ की मार, किसान बेहाल  

राजस्व विभाग के मुताबिक, पूर्वांचल के गाजीपुर , बलिया, आजमगढ़, देवरिया, कुशीनगर, गोंडा और बहराइच आदि जिलों में 5,000 से ज्यादा गांव बाढ़ और नदी की कटान की वजह से बर्बाद हो चुके हैं। गंगा, घाघरा और इनकी सहायक नदियों में तीन साल पहले आई बाढ़ ने करीब एक लाख परिवारों की जमीन-जायदाद छीन उन्हें खानाबदोश बना दिया।

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बेरोजगारों की फौज

इंडिया टूडे की एक पुरानी रिपोर्ट के अनुसार इस इलाके में बेरोजगार युवाओं की एक पूरी फौज खड़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रति व्यक्ति बिजली उपभोग और कारखाना मजदूरों की न्यूनतम संख्या पूर्वांचल को दूसरे क्षेत्रों से कमजोर ही साबित करती है। अपनी खास सिल्क साडिय़ों के लिए मशहूर मऊ जिले को कभी ‘पूर्वांचल का मैनचेस्टर’ कहकर पुकारा जाता था। मऊ से आजमगढ़ की ओर चलने पर बदहाली की दास्तान भी दिखाई देती है।

बंद मिलें, युवा बेहाल 

परदहा इलाके में 85 एकड़ में फैली प्रदेश की सबसे बड़ी कताई मिल बंद पड़ी है। यहां के बने धागों की देश-विदेश में मांग थी। 5,000 परिवारों का पेट पालने वाली यह मिल जब 10 साल पहले बंद हुई तो हजारों बेरोजगार हो गए। यहीं से दो किलोमीटर पर बंद पड़ी स्वदेशी कॉटन मिल का परिसर भी अब खंडहर हो चुका है।

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बलिया के रसड़ा क्षेत्र के माधवपुर गांव में मौजूद चीनी मिल को सरकार ने जनवरी, 2013 में बंद कर दिया। 500 से अधिक कर्मचारी एक झटके में बेरोजगार हो गए। जिला उद्योग कार्यालयों से जुटाए गए आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो भयावह हालात नजर आते हैं। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पिछले दस साल के दौरान औद्योगिक क्षेत्रों में चल रही 60 छोटी-बड़ी इकाइयां बंद हो गईं।

इसी दौरान गोरखपुर में 80, बलिया में 25, भदोही में 75 और मिर्जापुर में 65, चंदौली में 60 छोटे-बड़े उद्योगों ने दम तोड़ दिया।

अगले स्लाइड में पढ़ें – पूर्वांचल का चुनावी समीकरण

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