यूपी: पहले चरण के चुनाव में दांव पर लगी इन दिग्गजों की साख, आज की वोटिंग तय करेगी इनका भविष्य

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यूपी में पहले चरण का चुनाव आज से शुरु हो चुका हैं। ऐसे में तमाम राजनीतिक दल चुनावी रण के लिए अपना कमर कस चुके हैं। सियासत के इस अखाड़े में कौन किसे पटखनी दे दे ये शायद कोई नहीं जानता लेकिन इस चुनावी रण में कई दिग्गज नेताओं की साख दांव पर जरुर लग गई है।

मुस्लिम और जाट बहुत इस इलाके कई ऐसे नेता हैं, जिनकी साख दांव पर लगी है। ये नेता तकरीबन सभी पार्टियों के हैं। इन सभी का मकसद चुनाव में पार्टी को इस इलाके से जीत दिलाकर अपनी साख को बढ़ाना है। जातीय गणित, वोटबैंक और सियासी दमखम के नजरिये से देखें तो पश्चिमी यूपी की पांच हस्तियों का असर इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा है और इस चरण में इन्हीं की सियासी प्रतिष्ठा दांव पर हैं।

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रालोद प्रमुख अजीत सिंह

रालोद प्रमुख अजित सिंह देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पुत्र व राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया अजित सिंह को पश्चिमी यूपी का कद्दावर नेता माना जाता है। रालोद नेता अजित सिंह गन्ना बेल्ट’ के नाम से मशहूर इस क्षेत्र की जाट बहुल सीटों पर खासा प्रभाव है। हालांकि, 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को झटका जरूर लगा था, लेकिन अब हालात बदले नजर आ रहे हैं।

2012 विधानसभा चुनाव में 46 उम्मीदवारों को खड़ा किया था और पार्टी ने नौ सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद परंपरागत जाट-मुस्लिम वोटबैंक दरक गया था। यही वजह थी कि 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी का खाता तक नहीं खुला था, लेकिन इस बार फिर से अपने खोए सियासी रसूख को वापस पाने की कोशिशों में हैं। इस बार रालोद की रैलियों में भीड़ भी खूब जुट रही है।

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भाजपा के विवादित नेता हुकुम सिंह

भारतीय जनता पार्टी से कैराना लोकसभा सीट से सांसद हुकुम सिंह गुर्जर समाज से आते हैं। ऐसे में गुर्जरों में उनका खासा प्रभाव है। पिछले साल ही कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा प्रमुखता से उठाने वाले हुकुम सिंह ने अबकी बार बेटी मृगांका सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है। इसके चलते विरोध में भतीजा रालोद के टिकट पर इसी सीट से चुनावी मैदान में है। बावजूद इसके हुकुम सिंह का कद और प्रभाव ज्यादा है।

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केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान

भारतीय जनता पार्टी से मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से सांसद संजीव बालियान भी अपने विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं। फिलहाल केंद्रीय जल संसाधन राज्य मंत्री हैं। इन पर मुजफ्फरनगर दंगों के बाद ध्रुवीकरण के आरोप लगे थे। इनका अपने क्षेत्र में प्रभाव है।

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