अपने कैदियों के अंग जबरदस्ती निकाल रहा चीन

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चीन
प्रतिकात्मक तस्वीर

चीन अभी भी अपने कैदियों के अंग जबरदस्‍ती निकाल रहा है। एक नई रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।  कनाडा के पूर्व सांसद डेविड किलगोर, मानवाधिकार वकील डेविड मटस और पत्रकार ईथन गटमन ने चीन भर के अस्‍पतालों के आंकड़ों का अध्‍ययन कर यह दावा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, सत्‍ताधारी चीनी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी से जिसके विचार टकराते हैं, उसे उसके अंगों के लिए मौत के घाट उतार दिया जाता है।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अस्‍पतालों में हुए मानव अंग प्रत्‍यारोपणों और आधिकारिक आंकड़ों के बीच भारी अंतर है। रिपोर्ट बनाने वालों ने इसके लिए चीनी सरकार, कम्‍युनिस्‍ट पार्टी, स्‍वास्‍थ्‍य तंत्र, डाॅक्‍टरों और अस्‍पतालों को जिम्‍मेदार ठहराया है। मटस ने एक बयान में कहा, ”कम्‍युनिस्‍ट पार्टी कहती है कि हर साल होने वाले कानूनी प्रत्‍यारोपणों की संख्‍या करीब 10,000 है। लेकिन अगर हम सिर्फ दो या तीन बड़े अस्‍पतालों के रिकॉर्ड देखें तो पूरे चीन का आंकड़ा आसानी से बौना हो जाता है।” रिपोर्ट का अनुमान है कि चीनी अस्‍पतालों में हर साल 60,000 से 100,000 ट्रांसप्‍लांट किए जाते हैं।

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रिपोर्ट के मुताबिक, प्रत्‍यारोपणों के बीच का यह अतंर कैदियों से पूरा किया जाता है। बहुत से कैदी अपने धार्मिक और राजनैतिक विश्‍वास की वजह से जेल में हैं। चीन हर साल दी जाने वाली फांसियों की संख्‍या का खुलासा नहीं करता, चीन इसे एक राज रखता है। रिपोर्ट के नतीजे बीजिंग के दावों से बिलकुल उलट हैं जो उसने 2015 की शुरुआत में किए थे। चीन का दावा था कि अंगों के लिए कैदियों के सहारे रहने की बजाय वह ”ए‍शिया के सबसे बड़े स्‍वयंसेवी अंगदान तंत्र” की तरफ बढ़ चुका है। गुरुवार को एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता हुआ चुनइ्ंग ने कहा कि चीन में ”इस मुद्दे पर सख्‍त कानून और पाबंदियां हैं।” उन्‍होंने रिपोर्ट पर टिप्‍पणी करते हुए कहा, ”जहां तक टेस्टिमनी और प्रकाशित रिपोर्ट का सवाल है, मैं कहना चाहता हूं कि चीन में जबरन अंग निकलवाले की ऐसी कहानियां काल्‍पनिक और बेबुनियाद हैं। उनका कोई तथ्‍यात्‍मक आधार नहीं है।

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