भारत ने उठाया चीन की कमजोरी का फ़ायद, चित्त हुआ चीन, मालदीव बना मोहरा

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नई दिल्ली : लंबे समय से भारत और चीन एशिया में खुद को ताकतवर साबित करने की होड़ में लगे हुए हैं। इसमें कभी भारत का तो कभी चीन का पलड़ा भारी रहा है।हालांकि, पिछले कुछ सालों में भारत ने इस मामले में बाजी मार ली है। चीन को टक्कजर देते हुए उसने एशिया में अपनी खोई हुई जमीन वापस पा ली है। इसके पीछे जहां भारत की रणनीतिक सूझबूझ एक अहम कारक है वहीं चीन की एक ‘कमजोरी’ ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है। और वह ‘कमजोरी’ है किसी देश के शीर्ष नेतृत्वण से डील करने का चीन का आकर्षण। नेपाल और श्रीलंका के मामलों में जहां यह साफ दिखाई देता है वहीं मालदीव में भी जमीन तैयार हो रही है।

सत्ता से बेदखल किए गए मालदीव के राष्ट्र पति मोहम्मभद नशीद के वापस लौटने के फैसले पर उनके खिलाफ अरेस्ट वॉरंट जारी करने का मालदीव सरकार का फैसला सत्तामरूढ़ अब्दुेल्लाउ यामीन की सरकार की चिंताओं की तरफ इशारा करता है। 2012 में नशीद को जब अचानक सत्ता से हटाया गया था तब भारत बैकफुट पर चला गया था और इस छोटे से द्वीपीय देश में चीन के आगे बढ़ने का रास्ताा साफ हो गया था।

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नशीद के पतन और उनकी गिरफ्तारी में उनके द्वारा जल्दलबाजी में उठाए गए कुछ कदमों ने भी काफी योगदान दिया। हालांकि, इलाज के लिए उनके ब्रिटेन चले जाने और वहां शरण लेने के बाद अब श्रीलंका लौटने के उनके फैसले ने राजनीति में नए बदलाव की जमीन तैयार की है। नशीद के कदमों को इंडिया ने समर्थन दिया है और अब दबाव यामीन के ऊपर है।

भारत बेसब्री से चाहता है कि मालदीव में चुनाव हों और नशीद को अपने विरोधियों को चुनौती देने का एक मौका मिले। ऐसा इसलिए क्योंाकि इन विरोधियों ने अपने प्रभाव का इस्तेचमाल कर एक हद तक भारत को मालदीव से दूर रखा है और चीन के साथ दोस्तीि बढ़ाई है। यह इसी दोस्तीत का नतीजा था कि चीनी राष्र्चीपति शी चिनफिंग ने 2014 में मालदीव का दौरा किया था।

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हालांकि, मोदी सरकार ने भी बढ़त बनाने की कोशिश वाले एक कदम के तहत इस साल की शुरुआत में ही मालदीव के साथ एक रक्षा सहयोग संधि की थी, लेकिन नशीद के लौटने से परिस्थितियां और ज्या दा भारत के अनुकूल हो सकती हैं। इससे एक तरफ जहां मालदीव में चीन की योजनाओं को चुनौती मिलेगी वहीं भारत को फायदा होगा।

भारत द्वारा पर्दे के पीछे से चली गईं कुछ चालों के अलावा देश के शीर्ष नेतृत्वफ से डील करने की चीन की रणनीति ने भी एशिया में बढ़त बनाने में भारत को काफी फायदा पहुंचाया है। नेपाल और श्रीलंका के मामलों में इसे साफ तौर पर देखा जा सकता है। इन दोनों देशों में शीर्ष नेतृत्वर के बदलने के बाद चीन के हितों को थोड़ा झटका जरूर लगा है।

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नेपाल में केपी शर्मा ओली पर हद से ज्याकदा निर्भर होने का खामियाजा चीन को भुगतना पड़ रहा है। ओली जिस भारत विरोधी कार्ड के जरिए चीन का हित साध रहे थे, वह अब बीते दिनों की बात हो चुकी है। उन्होंधने मधेसी आंदोलन और इससे हुए नुकसान का जिम्माअ भारत के सिर डाल राजनीतिक हित साधने की कोशिश की, पर आखिरकार वह नाकाम हुई। पुष्पा कमल दहल उर्फ प्रचंड का दुबारा सत्ताी में आना भारत के लिए बढ़िया है और उन्हों ने भारत से संबंधों को और पुख्तां करने की बात कही है।

श्री लंका में महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल के दौरान श्री लंका, चीन के पाले में चला गया था। हालांकि, सत्ताक बदलने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के श्री लंका दौरे से दोनों देशों के संबंधों मंं और मजबूती आई है।