पाकिस्तान में हिंदू मैरिज एक्ट को मिली मंजूरी, पीएम शरीफ की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने पास किया बिल

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क्या है हिंदू मैरिज एक्ट ?

सरकार हिंदुओं की आबादी के हिसाब से हर इलाके में मैरिज रजिस्ट्रॉर अप्वॉइंट करेगी। यह कानून से शादी के हकों की बहाली, कानूनन अलग होने, शादी टूटने और आपसी रजामंदी से शादी तोड़ने पर मिलने वाली राहत और अलग होने पर पत्नी और बच्चों की फाइनेंशियल सिक्युरिटी का हक भी देता है। इसके अलावा यह कानून शादीशुदा रहे शख्स को फिर शादी करने, विडो को दोबारा शादी करने (इसमें महिला की रजामंदी और वक्त तय है) का हक देता है। इसमें नजायज बच्चों को भी कानूनी हक दिया गया है। यह कानून बनने से पहले हुईं हिंदू शादियों लीगल मानी जाएंगी। इनसे जुड़ी पिटीशन्स को फैमिली कोर्ट में पेश किया जाएगा।

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इसके अलावा कानून न मानने वालों के खिलाफ सख्त सज़ा के प्रावधान भी किए गए हैं। यह कानून तोड़ने पर जेल और एक लाख का जुर्माना या दोनों हो सकता है। सिंध प्रोविंस को छोड़कर पूरी पाकिस्तान पर लागू होने वाला पहला कानून है। सिंध का अलग मैरिज एक्ट है। पाकिस्तान की संसद ने 10 मार्च को इस कानून को पास किया था।

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भारतीय कानून से कैसे है अलग

पाकिस्तान में हिंदू विवाह अधिनियम वहां के हिंदू समुदाय पर लागू होता है, जबकि भारत में हिंदू मैरिज एक्ट हिंदुओं के अलावा जैन, बौद्ध और सिख समुदाय पर भी लागू होता है।

पाकिस्तानी कानून के मुताबिक शादी के 15 दिनों के भीतर इसका रजिस्ट्रेशन कराना होगा। भारतीय कानून में ऐसा प्रावधान नहीं है। इस बारे में राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं।

पाकिस्तान में शादी के लिए हिंदू जोड़े की न्यूनतम उम्र 18 साल रखी गई है। भारत में लड़के की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़की की 18 साल निर्धारित है।

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पाकिस्तानी कानून के मुताबिक, अगर पति-पत्नी एक साल या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं और साथ नहीं रहना चाहते, तो शादी को रद कर सकते हैं। भारतीय कानून में कम से कम दो साल अलग रहने की शर्त है।

पाकिस्तान में हिंदू विधवा को पति की मृत्यु के छह महीने बाद फिर से शादी का अधिकार होगा। भारत में विधवा पुनर्विवाह के लिए कोई समयसीमा तय नहीं है।

 

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