बता दें कि बीते महीने भारत ने पाकिस्तान में होने वाली 19वीं सार्क बैठक में जाने से इनकार कर दिया था। अफगानिस्तान, बांग्लादेश और भूटान जैसे देशों ने भी सार्क का बहिष्कार किया, जिसकी वजह से पाकिस्तान की काफी किरकिरी हुई थी। भारत ने उड़ी में सैन्य ठिकाने पर हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान की भूमिका और दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई न होने को वजह बताकर सार्क का बायकॉट किया था। इस बायकॉट की वजह से सार्क बैठक अनिश्चित वक्त के लिए टल गई और पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया।
डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, सार्क के सदस्य आठ देशों में अफगानिस्तान और बांग्लादेश के साथ भारत के मजबूत रिश्ते हैं। वहीं, भूटान सभी तरफ से भारत से घिरा ऐसा देश है जो भारत का विरोध करने की स्थिति में नहीं है। डॉन का आकलन है कि मालदीव्स, नेपाल और श्रीलंका के पाकिस्तान से अच्छे रिश्ते हैं, लेकिन वे इतने बड़े नहीं कि भारत का विरोध कर सकें।
रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के एक सीनियर डिप्लोमैट ने बताया कि पाकिस्तान बेहद सक्रियता के साथ नए क्षेत्रीय गठजोड़ की संभावनाएं तलाश रहा है। डिप्लोमैट के मुताबिक, पाकिस्तान मानता है कि सार्क में भारत का हमेशा दबदबा रहेगा, इसलिए पाकिस्तान ग्रेटर साउथ एशिया के बारे में सोच रहा है। पाकिस्तान को लगता है कि नई व्यवस्था की वजह से भारत अपने फैसले आगे से उस पर थोप नहीं पाएगा।
वॉशिंगटन के कूटनीतिक समीक्षकों का कहना है कि इस प्रस्तावित व्यवस्था से चीन को कोई आपत्ति नहीं होगी। उनका मानना है कि चीन भी क्षेत्र में बढ़ते भारत के दबदबे की वजह से चिंता में है। चीन नई व्यवस्था से ईरान और मध्य एशियाई देशों के जुड़ने में अहम भूमिका निभा सकता है।
हालांकि, एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि सार्क के वर्तमान सदस्य इस आइडिया का शायद ही समर्थन करें। अपनी सीमाओं से दूर जमीनी रूट से जुड़ने में बांग्लादेश, नेपाल या श्रीलंका को कोई खास दिलचस्पी नहीं होगी। बांग्लादेश और श्रीलंका के खुद के बंदरगाह हैं। नई व्यवस्था से अफगानिस्तान को फायदा है, लेकिन उसके भारत से बेहतर रिश्तों को देखते हुए यह मानना मुश्किल है कि वह पाकिस्तान के आइडिया को सपोर्ट करेगा।































































