ट्यूनीशिया में बड़ी संख्या में लोग जबरन रोजा रखवाए जाने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। लोगों की मांग है कि रोजा रखना ऐच्छिक हो और जो रोजा न रखना चाहे, उसे रमजान के महीने में खाने-पीने का अधिकार मिले। रविवार को एक स्थानीय मानवाधिकार संगठन की अपील पर बड़ी संख्या में लोग जमा हुए और उन्होंने रमजान के दौरान सार्वजनिक तौर पर खाने-पीने के अपने अधिकार का समर्थन करते हुए प्रदर्शन किया। ट्यूनीशिया में हाल के दिनों में रोजा न रखने वाले कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है। यहां रमजान के दौरान लोगों के सिगरेट पीने पर भी पाबंदी है।
रविवार को ट्यूनिश सेंटर पर कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने जमा होकर नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों ने अरबी, अंग्रेजी और फ्रेंच भाषाओं में लिखे पोस्टर्स के साथ प्रदर्शन किया। इन पोस्टर्स में लिखा था, ‘अगर तुम रोजा रखते हो और मैं खाता हूं, तो इससे तुम्हें क्या परेशानी होती है?’ इन कार्यकर्ताओं की मांग है कि सरकार धर्म और इससे जुड़े रीति-रिवाजों के पालन के लिए संविधान में दिए गए व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान करे। ट्यूनिशिया में संवैधानिक तौर पर रोजा न रखने वालों को सजा देने संबंधी कोई कानून नहीं है, इसके बावजूद सरकार ने रमजान के दौरान रोजा नहीं रखने वाले कई लोगों को गिरफ्तार करने का आदेश जारी किया। जिस मानवाधिकार संगठन ने इन प्रदर्शनों का आयोजन किया, उसका नाम ‘माउच बेसिफ’ है। स्थानीष भाषा के इस शब्द का मतलब ‘हमारी इच्छा के खिलाफ नहीं’ होता है।
इस संगठन ने सोशल मीडिया पर भी यह मुहिम शुरू की है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे रोजा नहीं रखने वालों की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हैं। मालूम हो कि रमजान का महीना शुरू होने के एक हफ्ते के अंदर ही ट्यूनिशिया में 4 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनका अपराध यह था कि रमजान होने के बावजूद उन्होंने दिन-दहाड़े खाना खा लिया था। इन सभी लोगों को रोजा नहीं रखने का दोषी मानते हुए 1 महीने जेल की सजा सुनाई गई है। अदालत ने उन्हें ‘जनता की परंपराओं और मान्यताओं पर हमला’ करने का दोषी माना।
एक अन्य मामले में पुलिस ने 2 लोगों को हिरासत में ले लिया। उनकी कार के अंदर शराब की खाली बोतल मिली थी। प्रदर्शनकारियों में से एक ने न्यूज एजेंसी AFP से बात करते हुए कहा, ‘जिस किसी को भी रोजा रखना हो, वह रोजा रखे। लेकिन जो नहीं रखना चाहता, उसे रखने के लिए मजबूर न किया जाए।’ यह संगठन रेस्ट्रॉन्ट्स को दिन में भी खोलने की मांग कर रहा है। ट्यूनीशिया में रमजान के दौरान कैफे और रेस्तरां शाम की इफ्तार से पहले तक बंद रहते हैं। एक हाई स्कूल छात्र ने AFP को बताया, ‘अगर कोई इंसान मुस्लिम होते हुए भी रोजा नहीं रखना चाहता, तो यह उसका फैसला है। अगर कोई यहूदी है, तो भी उसकी मर्जी है कि वह रोजा रखता है या वहीं। अगर कोई इंसान रोजा नहीं रख रहा, तो इससे किसी और को क्यों परेशानी होनी चाहिए? जबरन रोजा रखवाने की यह व्यवस्था मेरी समझ के बाहर है।’