इराक में बगदादी के साथ महायुद्ध अपने अंतिम पड़ाव है। बगदादी भी शायद अपने अंतिम ठिकाने पर है। इस समय बगदादी जहां हैं उस पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं। उस जगह का नाम है मोसुल का डैम, जिसे इराक में सद्दाम डैम के नाम से भी जाना जाता है। ये दजला नदी पर 1980-81 में बनकर तैयार हुआ था। सैकड़ों फुट उंचा ये डैम ही इराक की रेतीली जमीन को थामे हुए है। मोसुल का डैम ही इस पूरे इलाके में मौत के आगे दीवार बनकर खड़ी है। इसी डैम को इराक के साथ साथ पूरी दुनिया की ताकतें भी हर हाल में बचाए रखना चाहती हैं, क्योंकि इस डैम की दीवारे टूटने का मतलब है उस पूरे इलाके में भयंकर तबाही। इतनी तबाही जितनी शायद परमाणु बम से भी ना होती।
इस डैम के पानी का सैलाब सुनामी से भी ज्यादा तबाही फैलाने का माद्दा रखता है। न्यूक्लियर बम से भी ज्यादा लोगों की जिंदगी पल भर में खत्म करने की ताकत है। अगर इस डैम की दीवार टूट गई तो इसके पानी के प्रचंड वेग के आगे ऊंची से ऊंची इमारत भी ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएंगी। दुनिया की कोई ताकत इसकी तबाही को रोक नहीं पाएंगे।
बगदादी को पता है कि मोसुल के इस डैम को तबाह करके वो एक तीर से करोड़ों शिकार कर सकता है। करीब चार साल पहले आईएस ने मोसुल के साथ इस डैम पर मौत का पहरा बैठा दिया था। डैम की ताकत और तबाही की कुव्वत को अमेरिका और इराक बखूबी जानते थे। लिहाजा इराक ने पूरी ताकत झोंक दी। खुद अमेरिकी लड़ाकू विमानों ने आसमान से मौत बरसाकर आईएस को खदेड़ दिया।
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