यूपी की कई चुनावी रैलियों में पीएम नरेंद्र मोदी ने गरीब किसानों के कर्ज माफ करने का वादा किया था। इसके बाद कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने बयान दिया था कि यूपी में कर्ज माफी के पैसे केंद्र देगा। इसकी काफी आलोचना भी हुई। विपक्ष से माँग उठी कि केंद्र सिर्फ एक राज्य के लिए ऐसा कैसे कर सकता है। उसे देशभर के किसानों के कर्ज माफ करने चाहिए।
इन आलोचनाओं के बीच केंद्र सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली स्पष्ट किया कि सरकार इस नीति में राज्यवार भेद नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि केंद्र की ओर से किसी विशेष राज्य को मदद करने और किसी दूसरे को न करने की नीति नहीं अपनाई जाएगी।जेटली ने राज्यसभा में कहा, ‘यदि किसी राज्य सरकार के पास अपने संसाधन हैं और वह किसानों के लोन माफ करना चाहती है तो वह ऐसा कर सकती है। लेकिन, ऐसी स्थिति नहीं होगी कि केंद्र सरकार किसी एक राज्य की तो मदद करे और किसी दूसरे राज्य को नहीं’।
पिछले हफ्ते एसबीआई की चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य ने भी किसान कर्ज माफ किए जाने पर एतराज जताया था। उन्होंने भी अनुशासन बिगाड़ने की बात कही थी। अरुंधति भट्टाचार्य ने कहा था कि अगर सरकार ऐसा कदम उठाती है तो देश के कई बैंक कर्ज में डूब जाएंगे। इससे बैंकों का काफी नुकसान होगा।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के उप-गर्वनर एस.एस. मुंद्रा ने गुरुवार को भारतीय स्टेट बैंक की प्रमुख अरुंधती भट्टाचार्य के विचारों का समर्थन करते हुए, किसानों को कर्ज छूट देने को लेकर चिंता जताई और कहा कि इससे क्रेडिट अनुशासन बिगड़ेगा।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने देश भर के किसानों के कर्ज माफ किए जाने की मांग की है। कांग्रेस का कहना है कि उसके नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2006 में देश भऱ के किसानों के लोन माफ किए थे। यही नहीं बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने यूपी के किसानों की तर्ज पर ही महाराष्ट्र में भी लोन माफ किए जाने की मांग की है।
वसूल न होनेवाला ऋण बैंक, समाज और अर्थव्यवस्था पर भार है। वसूली कानून ऐसा हो कि छोटे उद्यमी ठगा न महसूस करें। व्यवसाय करने का वातावरण पारदर्शी और सहयोग प्रदान करनेवाला हो। किसान को भी ऋण-माफी न देनी पड़े, इसके लिए खेती को लाभदायक बनाया जाये। ऋण लेनदेन का अनुशासन बनाये रखना सभी पक्षों की सम्मिलित जिम्मेवारी हो।