नई दिल्ली। भारत का विदेशी कर्ज मार्च 2016 की समाप्ति पर एक साल पहले के मुकाबले 10.6 अरब डालर यानी 2.2 प्रतिशत बढ़कर 485.6 अरब डालर हो गया। विदेशी कर्ज में यह वृद्धि विशेष तौर पर प्रवासी भारतीय जमा और दीर्घकालिक कर्ज बढ़ने की वजह से हुई है।
मार्च 2016 की समाप्ति पर दीर्घकालिक विदेशी कर्ज 402.2 अरब डालर था। एक साल पहले के मुकाबले यह 3.3 प्रतिशत अधिक रहा। कुल विदेशी कर्ज में दीर्घकालिक कर्ज का हिस्सा 82.8 प्रतिशत रहा। मार्च 2015 में यह 82 प्रतिशत था। ‘भारत का विदेशी कर्ज (2015-16) की स्थिति’ नामक सालाना स्थिति रिपोर्ट के 22वें इश्यू में यह जानकारी दी गई है।
आर्थिक मामले विभाग द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘‘दीर्घकालिक रिण विशेष तौर पर प्रवासी भारतीयों की जमा राशि बढ़ने से विदेशी कर्ज में वृद्धि हुई है।’’ रिपोर्ट के मुताबिक अल्पकालिक विदेशी कर्ज इस दौरान 2.5 प्रतिशत घटकर 83.4 अरब डालर रह गया। एक साल पहले मार्च में यह 84.7 अरब डालर पर था।
अल्पकालिक कर्ज में कमी आने की मुख्य वजह व्यापार से जुड़े कर्ज में कमी आना रहा है। कुल विदेशी कर्ज में अल्पकालिक विदेशी रिण का हिस्सा 18 प्रतिशत से घटकर 17.2 प्रतिशत रह गया। देश के विदेशी कर्ज में बड़ा हिस्सा दीर्घकालिक कर्ज का है।