एक थी नरगिस

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साल 1927 के लगभग… रावलपिंडी के एक रसूखदार परिवार ने अपने बेटे को मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए विलायत भेजने का फ़ैसला किया… वह लड़का रावलपिंडी से चला और एक दिन के लिए लखनऊ में रूका.. लखनऊ से अगली सुबह उसे मुंबई जाना था …. शाम को वह लड़का, लखनऊ की मशहूर गायिका जद्दनबाई का गाना सुनने के लिए पहुंच गया.. जद्दन बाई का उस पर इतना गहरा असर हुआ कि उसके बाद से वो वहां से कहीं नहीं गया.. जिंदगी भर जद्दनबाई का ही हो कर रह गया … जद्दन से शादी कर ली ….उस लड़के का नाम था मोहन लाल…. यानी नरगिस के पिता..

मोहन लाल के बारे में बताने की वजह सिर्फ़ ये थी कि जितनी अजीब जिंदगी मोहन लाल की थी, उनकी बेटी नरगिस की जिंदगी भी उतनी ही अजीब थी. कई सालों तक बालीवुड में राज करने वाली नरगिस के बार में आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि वो कभी भी फ़िल्मों में नहीं आना चाहती थी. नरगिस की मां जद्द्न बाई चूंकी बाद के दिनों में फ़िल्मों से जुड़ चुकी थी इसलिए वो चाहती थी कि नरगिस भी फ़िल्मों में काम करे. लेकिन बचपन से ही नरगिस के दिल में डॉक्टर बनने की ख्वाहिश थी. मां के कहने पर नरगिस ने कुछ फ़िल्मों में बाल कलाकार का रोल किया था, लेकिन बेमन से.बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट नरगिस की पहली फ़िल्म थी 1935 में आई तलाश-ए-हक.1941 में नरगिस की मां ने उन्हे महबूब खान की नई फ़िल्म के लिए स्क्रीन टेस्ट देने के लिए कहा. लेकिन चूंकी नरगिस फ़िल्मों में आना ही नहीं चाहती थी, इसलिए उन्होने स्क्रीन टेस्ट में खराब से खराब परफ़ॉर्म किया, गलत तरीके से डायलॉग बोले, बुरी एक्टिंग की ताकि महबूब खान उन्हे इस फ़िल्म में ना ले. लेकिन महबूब खान नरगिस की खूबसूरती से इतने प्रभावित हुए कि उन्होने स्क्रीन टेस्ट को दरकिनार करके नरगिस को अपनी फ़िल्म की लीड एक्ट्रेस चुन लिया. नरगिस की वो पहली फ़िल्म थी 1943 में आई तकदीर. हांलांकि ये फ़िल्म ज्यादा नहीं चली लेकिन नरगिस के काम की खूब सराहना हुई. इसके बाद नरगिस ने कुछ और फ़िल्मों में काम किया, लेकिन उन्हे वो बड़ी सफ़लता नहीं सकी जिसकी उन्हे तलाश थी. नरगिस की तलाश खत्म हुई 1948 में जब उनकी फ़िल्म मेला रिलीज हुई.इस फ़िल्म में नरगिस के स्क्रीन पार्टनर थे दिलीप कुमार.

इसके बाद नरगिस ने कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा. इसी साल आई उनकी एक और फ़िल्म अनोखा प्यार ने भी अच्छा कारोबार किया. इस फ़िल्म में एक बार से दिलीप कुमार उनके हीरो थे.1948 का ये साल नरगिस की जिंदगी के लिए बेहद अहम साल था, क्योंकि इसी साल आई थी फ़िल्म आग. इस फ़िल्म में नरगिस के हीरो थे राजकपूर. मतलब वो जोड़ी जिसने आगे चलकर कई हिट फ़िल्में तो दी थी, मुहब्बत का एक ऐसा तराना भी छेड़ा जिसे आज तक गुनगुनाया जाता है .

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नरगिस का ‘राजकपूरनामा’
जब बात राजकपूर और नरगिस की निकली है तो नरगिस के सफ़रनामा को थोड़ी देर के लिए रोक कर हम आपको नरगिस का राजकपूरनामा बताते हैं.नरगिस और राजकपूर की कहानी जितनी फ़िल्मी थी, उनकी पहली पहली मुलकात भी उतनी ही नाटकीय थी. नरगिस और राजकपूर की पहकी मुलाकात सन 1946 में हुई थी. साल 1946 में राजकपूर अपनी फ़िल्म आग की शुरुआत कर चुके थे. अपने फ़िल्म के कुछ खास सीन्स को शूट करने के लिए राजकपूर को एक स्टूडियों की तलाश थी. इसी बीच उन्हे पता चला कि, नरगिस की मां जद्दनबाई मुंबई के एक फ़ेमस और बड़े स्टूडियों में रोमियों और जूलिएट की शूटिंग कर रही है. जद्दनबाई से वो स्टूडियो कुछ दिनों के लिए उधार लेने के लिए राजकपूर उनसे मिलने के लिए उनके घर गए, लेकिन राजकपूर को क्या मालूम था कि उस रोज उनकी दुनिया बदलने वाली है. जब वो जद्दनबाई के घर पहुंचे तो घर का दरवाजा खोला जद्दनबाई की बेटी नरगिस ने.पहली नजर में नरगिस , राजकपूर के दिलो-दिमाग पर छा गई. उस मुलाकात का राजकपूर के दिलो-दिमाग पर इतना गहरा असर था कि 1946 में हुई इस मुकालात को राजकपूर ने करीब सत्ताईस साल बाद अपनी फ़िल्म बॉबी में हूबहू उतार दिया.राजकपूर को उस रोज स्टूडियो मिला या नहीं ये तो नहीं मालूम , लेकिन उस रोज नरगिस से मिल कर वो सीधे अपने दोस्त इंदर राज के पास गए जो उन दिनों राजकपूर की फ़िल्म आग की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे थे. फ़िल्म की स्क्रिप्टिंग लगभग पूरी हो चुकी थी, लेकिन राजकपूर ने इंदर राज से जोर देकर कहा कि वो कुछ भी करके इस फ़िल्म में नरगिस के लायक रोल जोड़ दे, क्योंकि अब नर्गिस की उनकी फ़िल्म की हिरोइन होंगी. आखिरकार राजकपूर ने इस फ़िल्म में नरगिस का किरदरा जुड़वाया. नरगिस ने ये फ़िल्म की, और ये फ़िल्म के ब्लॉक बस्टर साबित हुई.

1948 में आई फ़िल्म आग राजकपूर और नरगिस की जोड़ी की पहली फ़िल्म थी. इस फ़िल्म में इन दोनों की जोड़ी हिट हुई. इसके बाद इनकी अगली फ़िल्म थी 1949 में आई फ़िल्म बरसात. इसके बाद इस जोड़ी ने कई हिट फ़िल्मों में काम किया. इनमें अंदाज, जान पहचान, प्यार, आवारा, अनहोनी, आशियाना, अंबर, आह, श्री चार सौ बीस और जागते रहो जैसी फ़िल्में शामिल हैं.

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राजकपूर तो पहली नजर से ही नरगिस के दीवाने थे, लेकिन राजकपूर की तरफ़ नरगिस का झुकाव सन 1951 में फ़िल्म आवारा की शूटिंग के समय हुआ. नरगिस राजकपूर की व्यक्तित्व, उनके काम करने करने का अंदाज़ और उनके हुनर पर इतनी फ़िदा हुई कि इसी साल उन्होने कसम खाई कि अब से वो सिर्फ़ और सिर्फ़ राजकपूर की ही फ़िल्में करेंगी. अपने इस कसम को रखने के लिए उन्होने महबूब खान की फ़िल्म आन में काम करने से भी मना कर दिया. ये वहीं महबूब खान थे जिन्होने नरगिस को पहली बार ब्रेक दिया था . महबूब की फ़िल्म आन की लीड रोल में थे दिलीप कुमार . ये वहीं दिलीप कुमार थे, जिनके साथ नरगिस की पहली फ़िल्म हिट हुई थी. लेकिन राजकपूर के इश्क में पड़ी नरगिस ने करीब करीब एहसानफ़रामोशी करते हुए इस फ़िल्म को, महबूब खान को और दिलीप कुमार को ठुकरा दिया था. कहते हैं कि राजकपूर और नरगिस शादी भी करना चाहते थे, लेकिन इनकी शादी के आड़े आ गया इनका धर्म. नरगिस और राजकपूर दोनों के घर के लोगों ने इस शादी से साफ़ मना कर दिया ..राजकपूर और नरगिस की शादी में इनके धर्म के अलावा राजकपूर का पुराना वादा भी आड़े आ गया जो उन्होने सालों पहले अपने पिता से किया था. राजकपूर ने अपने पिता से वादा किया था कि वो फ़िल्म इंड्स्ट्री से जुड़ी किसी लड़की से शादी नहीं करेंगे. 1956 के शुरूआत में ही नरगिस को लग गया था कि राजकपूर को लेकर देखे गए उनके ख्वाबों की तामीर नहीं हो सकती, इसलिए उन्होने खुद से किया वादा तोड़कर महबूब खान की फ़िल्म मदर इंडिया में काम करने का फ़ैसला किया. उस समय नरगिस को भी नहीं मालूम था अगले एक सालों में उनकी जिंदगी तीसरी बार करवट लेगी

फ़िल्म मदर इंडिया को साईन करने से पहले ही सुनील दत्त नरगिस के दीवाने हो चुके थे. हांलांकि उस समय तक नरगिस की गिनती टॉप की हिरोइन्स में होती और सुनील दत्त अभी करीब करीब स्ट्रगल कर रहे थे . फ़िल्म मदर इंडिया की शूटिंग शुरू होते होते नरगिस का भी झुकाव सुनील दत्त की तरफ़ होने लगा था. चूकि फ़िल्म में नरगिस को सुनील दत्त की मां का रोल करना था इसलिए फ़िल्म के डायरेक्टर महबूब खान नहीं चाहते थे कि इन दोनों की अफ़ेयर के खबरे बाहर तक आए. क्योंकि इससे फ़िल्म की मार्केटिंग की असर पड़ता.महबूब साहब नहीं चाहते थे कि क्रू मेंबर्स को भी इस अफ़ेयर की भनक लगे, उन्हे डर था कि अगर ये अफ़ेयर क्रू मेम्बर्स की भी निगाह में आ गया तो अखबारों तक पहुंचते देर नहीं लगेगी.उन्होने नरगिस और सुनील दत्त दोनो को सख्त हिदायत दी थी कि वो सेट पर एक दूसरे के सामने तब तक ना जाए जब तक कि इन कोई सीन ना हो. कहते हैं कि मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान खुद महबूब खान इन दोनों की रखवाली किया करते थे. बहरहाल सुनील दत्त और नरगिस की जोड़ी की ये फ़िल्म रिलीज हुई, हिट हुई, और ऐसी हिट हुई कि करीब साठ साल बीत जाने के बाद दर्शकों के बीच इस फ़िल्म का क्रेज़ कम नहीं हुआ है

सुनील दत्त से मुहब्बत करके नर्गिस एक बार फ़िर से उसी दोराहे पर आ खड़ी हुई जहां वो राजकपूर के साथ खड़ी थी. सुनील दत्त और नरगिस की शादी के बीच एक बार फ़िर से धर्म आड़े आने लगा. फ़िल्म समीक्षक ईश्वर देसाई ने अपनी किताब किताब ट्रू लव स्टोरी ऑफ़ नरगिस एंड सुनील दत्त’ में लिखा है कि – ‘नरगिस को इस शादी में अपने भाई से मदद मिलने की उम्मीद थी, क्योंकि नरगिस ने कई बार, कई तरह से अपने भाई की मदद की थी, लेकिन नरगिस के भाई ने मदद करने से साफ़ इंकार कर दिया. अपने भाई की बेरूखी से नरगिस लगभग टूट गई थी, लेकिन तब सुनील दत्त ने मामला संभाला .सुनील दत्त ने नरगिस के घर के लोगों को शादी के राजी किया ‘.बड़ी जद्दोजहद के बाद 11 मार्च 1958 को सुनील दत्त और नरगिस की शादी हो गई…

सुनील दत्त नरगिस से जिंदगी भर उतनी ही मुहब्बत करते रहे जितना उन्होने पहले दिन किया था. 1980 में नरगिस को मालूम चला कि उन्हे कैंसर है. इलाज के लिए जब वो अमेरिका गई तो सुनील दत्त बिल्कुल टूट गए. ये वो समय था जब नरगिस के बेटे संजय दत्त ड्रग्स में पूरी तरह से डूब चुके थे और बेटी प्रिया अभी बहुत छोटी थी. उस हालत में भी सुनील दत्त ने ना सिर्फ़ अमेरिका में नरगिस का इलाज कराया, बल्कि बच्चों के साथ साथ अपना फ़िल्मी करियर भी संभाला. 1981 में नरगिस जब इंडिया वापस लौटी तो पूरी तरह से ठीक नही हुई थी. 2 मई 1981 को कोमा की हालत में उन्हे मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया था..अगले दिन यानि 3 मई को उनकी मौत हो गई.

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