भारत के लिए खतरे की घंटी, कराची बंदरगाह पर मौजूद रहता है चीन की परमाणु पन्डुब्बी

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पिछले कुछ सालों में भारतीय नौसेना को पूरा यकीन हो चुका है कि हिन्द महासागर में चीनी परमाणुशक्ति-चालित पनडुब्बियों की मौजूदगी बहुत सोच-समझकर बनाई गई उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत चीन इस इलाके में अपनी सैन्य मौजूदगी को बढ़ा रहा है।
बहरहाल, जो बात साफ है, वह है कि इस समय हिन्द महासागर में पानी के नीचे बिल्कुल वैसी ही चालें चली जा रही हैं, जैसा शीतयुद्ध के दिनों में किया जाता था। वैसे, हिन्द महासागर में ऑपरेट करने के लिए चीनी पनडुब्बियों को मलक्का, लोम्बोक या सुंडा जलडमरूमध्य से होकर जाना पड़ेगा, जहां समुद्र के छिछले होने तथा अंतरराष्ट्रीय नियमों के चलते उन्हें या तो सतह पर रहना होगा, या कम से कम दिखते रहना पड़ेगा।

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इस वजह से भारतीय नौसेना सहित क्षेत्रीय नौसेनाओं को चीनी पनडुब्बियों के फिर गहरे पानी में गोता लगा लेने से पहले उनकी गतिविधियों पर निगरानी रखने का मौका मिलेगा। भारतीय नौसेनाधिकारियों ने बताया कि अमेरिका-निर्मित पी8-आई एन्टी-सबमरीन युद्धक जेट विमानों को शामिल करने से बहुत फायदा हुआ, और हिन्द महासागर में चीनी पनडुब्बियों पर नज़र रखने में बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। पुराने होते जा रहे सोवियत-निर्मित टुपोलेव टीयू-142 की जगह ले रहे पी8-आई में अत्याधुनिक सेंसर लगे हैं, जिनसे पानी के भीतर पनडुब्बी द्वारा की जाने वाली आवाज़ को भांपा जा सकता है। जब किसी पनडुब्बी का सुराग मिल जाता है, तो पी8-आई पनडुब्बी को हथियारों की मदद से उलझा सकता है, या अपने डाटालिंक की मदद से उसी इलाके में मौजूद मित्र पोतों तथा पनडुब्बियों समेत अपने नौसैनिक पोतों-पनडुब्बियों को उस पनडुब्बी की सही जगह की सूचना दे सकता है।

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