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ऐसे में सबसे ज्यादा फायदा उन थर्ड पार्टी कंपनियों को हुआ जो कि बैंको को गारंटर बना के स्वेपिंग मशीन की सर्विस देने का काम करती है….आरबीआई के डाटा के मुताबिक नोटबंदी के बाद से 1.6 मीलियन कैशलेस ट्रांजेक्शन बढ गईं, जबकि इससे पहले सिर्फ 50 मीलियन लोग ही ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करते थे। इससे ये बात तो साफ हो गई कि यकिनन केंद्र सरकार के इस फैसले से कैशलैस सिस्टम को बढावा मिला है। सब्जीबाले से लेकर छोटे दुकानदार और चाय बेचने वाले तक ने स्वाइपिंग मशीनों के जरिए कैशलेस लेन-देन शुरू किया, और पीएम मोदी के सपने को साकार करने में बड़ी भागीदारी निभाई।

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लेकिन ऐसे में सवाल एक बार फिर वही खड़ा हो गया है कि क्या ऐसा करने से वाकई काले धन पर ब्रेक लगा है, और क्या सरकार के इस फैसले से वाकई घूसखोरी बंद हो गई ? इसी सवाल का जवाब जानने के लिए कोबरोपोस्ट की टीम ने तहकीकात की। आप भी देखिए स्वाइपिंग मशीन के जरिए कैसे अभी भी कुछ लोग काले कारनामों और रिश्वतखोरी कर रहे हैं।

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इस तहकीकात का मकसद उन लोगों की सच्चाई को दिखाना था जो पीएम मोदी के डिजिटल इण्डिया के सपने में सेंध लगा रहे हैं, क्योंकि एक तरफ सरकार नोटबंदी के फैसले को कालेधन के खिलाफ बडा प्रहार बता रही है वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग कैशलैस सिस्टम को हथियार बनाकर कालेधन वसूलने की कोशिश में लगे हैं।

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