रघुराम राजन का आरबीआई गवर्नर का कार्यकाल खत्म होने वाला हो लेकिन भारत उन्हें हमेशा आर्थिक सुधारों के लिए याद रखेगा। हालांकि हाल के कुछ दिनों में उनपर राजनीतिक हमले बढ़ गए है लेकिन शायद ही उन्हें इन सब बातों से फर्क पड़ता है। आज रघुराम राजन ने अपने आलोचकों पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा है कि एक तरफ तो यह आलोचना होती है कि रिजर्व बैंक ने उच्च नीतिगत दर के साथ वृद्धि को खत्म कर दिया जबकि दूसरी तरफ इस बात की सराहना होती है कि दुनिया में हमारा देश तीव्र वृद्धि हासिल करने वाली अर्थव्यवस्था है, यह विरोधाभास है। उन्होंने सरकार से कहा कि वह प्रेरित आलोचना से आगे देखे और केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का संरक्षण करे।
राजने ने विरोधियों की उस दलील को भी नकार दिया जिसमें उनके विरोधी कहते हैं कि मुद्रास्फीति में कमी का कारण बहुत हद तक ‘गुडलक’ है जो तेल की कम कीमत से आया न कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति उपायों का परिणाम है। उन्होंने कहा कि वैश्विक कीमतों में गिरावट के बड़े हिस्से का लाभ घरेलू बाजार में आगे नहीं बढ़ाया गया क्योंकि सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाया।
आगे राजने ने सरकारी बैंको के मुख्य अधिकारी को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मुख्य कार्यकारी जिनका कार्यकाल कम बचा हुआ है, वे अधिक कड़ी कार्रवाई करने और एनपीए को चिन्हित करने से बच रहे हैं क्योंकि वे समस्या अपने उत्तराधिकारी को स्थानांतरित करने को तरजीह दे सकते हैं। राजन ने यहां एक एक व्याख्यान में कहा कि उच्च मुद्रास्फीति का कमजोर तबकों पर घातक प्रभाव पड़ता है और आश्चर्य जताया कि कीमत वृद्धि परिदृश्य को लेकर थोड़ी भी चिंता नहीं है।