मोदी के मंत्री को भी नहीं बख्शे बिल्डर्स, राज्यवर्धन राठौर को दिया जर्जर फ्लैट

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फाइल फोटो।

नई दिल्ली। अपना घर सभी का एक सपना होता है। हम अपने परिवार को एक छत के साये में लाने के लिए अपने जीवन भर की कमाई लगा देते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि पैसे लेकर लोगों को वादे के मुताबिक फ्लैट न देना तो बिल्डरों की आदत हो गई हैं। आए दिन देखने को मिल रहा है कि बिल्डर्स लोगों के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं, और यह सिर्फ एक आम आदमी की बात नहीं है, बल्कि इन बिल्डरों के धोखाधड़ी के शिकार मोदी सरकार के मंत्री भी हो रहे हैं।

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जी हां, केंद्रीय सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन राठौर को बिल्डर ने जो फ्लैट दिया है, वह रहने लायक ही नहीं है। जिससे नाराज राठौर ने सुप्रीम कोर्ट को इस बारे में जानकारी दी है। इसके बाद कोर्ट ने इसकी जांच के लिए बुधवार(9 नवंबर) को वकीलों की दो सदस्यीय समिति गठित की।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 21 अक्टूबर को बिल्डर पा‌र्श्वनाथ डेवलपर्स को दो दिनों के भीतर मंत्री को फ्लैट का कब्जा सौंपने का आदेश दिया था। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अमिताव राय की पीठ को राठौर के वकील ने बताया कि आवंटित फ्लैट तक पहुंचने की आम सुविधा नहीं, जैसा कि बुकिंग के समय कहा गया था।

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राठौर ने कोर्ट को बताया कि जिस टावर में उनका फ्लैट है वहां जाने का रास्ता कच्चा है और उसके आगे झुग्गी बस्ती है। पार्किंग की सुविधा नहीं दी गई है और टावर का कब्जा प्रमाण पत्र नहीं मिला है। इसके बाद कोर्ट ने मंत्री की शिकायतों की जांच के लिए वकीलों की दो सदस्यीय समिति बनाई।

कोर्ट ने समिति को परियोजना स्थल जाकर जांच करने और दो सप्ताह के भीतर रिपोर्ट देने को कहा है। इस मामले में 29 नवंबर को अगली सुनवाई होगी। मुआवजे को लेकर कोर्ट ने राठौर से कहा कि पहले प्लैट का कब्जा लें उसके बाद इस पहलू पर गौर किया जाएगा।

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आपको बता दे कि केंद्रीय मंत्री ने 2006 में पा‌र्श्वनाथ की एग्जोटिका परियोजना में फ्लैट बुक कराया था और करीब 70 लाख रुपये दिए थे। बिल्डर को 2008-09 में फ्लैट सौंपना था, लेकिन ऐसा न होने पर राठौर उपभोक्ता अदालत गए। शीर्ष अदालत ने बड़े-बड़े दावे करने के लिये इस बिल्डर को आड़े हाथ लिया था।