राहुल गांधी के लिए मोदी पर ‘सहारा’ का तीर चलाना मजबूरी बन गया था। दो हफ्ते पहले वो घोषणा कर चुके थे कि उनके पास ऐसी जानकारी है, जो भूचाल पैदा कर देगी। इसे छिपाकर रखना राहुल के लिए संभव नहीं था। देर से दी गई इस जानकारी से अब कोई भूचाल तो पैदा नहीं होगा, पर राजनीति का कलंकित चेहरा जरूर सामने आएगा।
जिन दस्तावेजों का जिक्र किया जा रहा है, उनमें कांग्रेस को परेशान करने वाली बातें भी हैं। अलबत्ता इन आरोपों और प्रति-आरोपों के कारण राजनीतिक दलों के चंदे में पारदर्शिता की मांग को अब और बल मिलेगा। राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ वही आरोप दोहराए जिन्हें लेकर प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
राहुल ने इनकम टैक्स विभाग के दस्तावेजों का हवाला देते हुए पीएम मोदी पर आरोप लगाया कि उन्होंने सहारा और बिड़ला कंपनी से कई बार करोड़ों रुपये लिए।इन्हीं जानकारियों में एक जानकारी यह थी, ‘गुजरात सीएम- रु 25 करोड़। 12 पेड 13?’ सीबीआई ने इन कागजात के आधार पर किसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं कराई। बल्कि इन दस्तावेजों को आयकर विभाग को सौंप दिया।
आयकर विभाग ने इस पर विस्तार से जांच की। उन दिनों केंद्र में यूपीए की सरकार थी। आयकर विभाग ने कंपनी के सीईओ से पूछताछ की। उनका कहना था कि हां, मैंने यह लिखा था, पर यहां गुजरात सीएम का मतलब था- गुजरात एल्कली एंड केमिकल्स। आयकर विभाग ने इसका मतलब निकाला कि सीईओ झूठ बोल रहे हैं।
दूसरा मामला है सहारा दस्तावेजों का। सहारा के नोएडा दफ्तर पर 22 नवंबर 2014 को छापा पड़ा। इसमें 137 करोड़ रुपए की नकदी पकड़ी गई। साथ में बड़ी तादाद में कागजात मिले। जिनसे जाहिर होता था कि अनेक वरिष्ठ राजनेताओं को पैसा देने की पेशकश की गई थी या दिया गया था। एक दस्तावेज में सहारा समूह को मिले धन और अलग-अलग तारीखों में अलग-अलग लोगों को दी गई रकम का विवरण था।
इनमें कुछ मुख्यमंत्रियों को पैसा देने की बात थी, जिनमें से एक कांग्रेस से भी संबंधित हैं। यह पैसा 2013 और मार्च 2014 के बीच दिया गया।प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में इन दस्तावेजों के आधार पर याचिका दायर की है। उनका कहना है कि ऐसे मामलों की जांच सरकार के अधीन रहने वाली एजेंसियां करेंगी। तो उनसे कुछ उम्मीद नहीं की जा सकती है। वे इसके लिए एसआईटी बनाने की मांग कर रहे हैं।
सहारा के दस्तावेजों से यह पता नहीं लगता कि यह धनराशि किस काम के लिए दी गई है। यह किसी किस्म का राजनीतिक चंदा है या कुछ और? अलबत्ता जिन दस्तावेजों का उल्लेख हो रहा है, उनमें कांग्रेस के कुछ नेताओं के नाम भी हैं। इन दस्तावेजों के सहारे कॉरपोरेट सेक्टर और राजनीति के रिश्तों के एक अंधेरे कोने पर रोशनी पड़ने की संभावना जरूर पैदा हुई है। इसकी कालिख से कांग्रेस पहले से पुती पड़ी है।
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